________________
किसी भी साधक की साधना के लिए जितनी भूमिका किसी गुरु की होती है उससे कहीं ज्यादा भूमिका आदमी की स्वयं की हुआ करती है। अपने स्वयं की लगन, स्वयं की जिज्ञासा तथा स्वयं की तत्परता साधक की साधना को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। ज्यों-ज्यों साधक लगन के साथ अपनी साधना करता चला जाता है, त्यों-त्यों वह अपने साध्य की तरफ बढ़ता चला जाता है।
यदि व्यक्ति अपनी साधना के साथ धैर्य और शांति का सम्बल बनाए हुए रखे और अप्रमाद और सचेतनता की दृष्टि का उपयोग करता रहे तो निश्चित तौर पर उसमें गहराई आनी ही आनी है।
संभव है अगर किसी साधक को लगता हो कि मनोयोगपूर्वक ध्यान करने के लिए बैठने के बावजूद उसके भीतर गहराई न बन पाई। तो संभव है इसके पीछे हमारे किसी अंतराय ने बाधक का काम किया हो। किन्तु जिस व्यक्ति ने जीवन का यह मर्म समझ लिया है कि अगर परमात्मा को पाना है तो उसे मीरा बनना होगा और अगर मुक्ति को साधना है तो महावीर और बुद्ध होना होगा। जब तक कोई भी साधक अपने-आप को उस दहलीज़ तक ले जाने के लिए तत्पर न होगा, तब तक व्यक्ति, व्यक्ति रहेगा। तब तक वह साधना के मार्ग पर चलता रहेगा, लेकिन साध्य का अर्जन तो तभी हो सकता है जब कोई भक्ति के रास्ते पर चल कर मीरा बने या साधना के रास्ते पर चलकर महावीर या बुद्ध बने।
याद रखिए धर्म की शुरुआत जब-जब भी होगी, आदमी के अपने जीवन से ही होगी। जब तक व्यक्ति किताबों का धर्म करता रहेगा तब तक वह किसी और धर्म का अनुसरण करता रहेगा, पर जब व्यक्ति धर्म को अपने जीवन के साथ जोड़ने की कोशिश करेगा, तो धर्म की सच्ची शुरुआत व्यक्ति के अपने जीवन से ही होगी।
___ हजारों हजार लोग कोई विष्णु भगवान के अनुयायी होकर वैष्णव बने हुए हैं, कोई महावीर के अनुयायी होकर जैन बने हुए हैं। पर मैं यह प्रेमपूर्वक अनुरोध कर देना चाहूँगा कि महावीर ने कभी नहीं कहा कि तुम मेरे अनुसरण कीजिए आनंददायी धर्म का
८१
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org