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________________ दुनिया में यों तो गुरु और शिष्य का संबंध होता है, माता और पुत्र का संबंध होता है पर ध्यान के द्वार पर कदम रखने वाले व्यक्ति के लिए तुम्हीं तुम्हारे गुरु होते हो और तुम्हीं तुम्हारे शिष्य होते हो। तुम्हीं तुम्हारे प्रेमी होते हो और तुम्हीं तुम्हारे मित्र होते हो । सहजात्म स्वरूप परमगुरु । आत्मा के सहजस्वरूप के प्रति होने वाली सचेतनता ही व्यक्ति का गुरु होता है। ध्यान में हर संबंध शिथिल हो जाता है, तुम्हीं केवल शेष रहते हो । ध्यान की अन्तर्यात्रा करते समय तो प्रेमी को भी बाहर रखना पड़ता है और प्रेमिका को भी बाहर रखना पड़ता है। दोनों में से अगर किसी एक को भी अन्दर लेकर चले गए तो ध्यान ध्यान नहीं होता । वो ध्यान भी भीतर का जंजाल भर हो जाएगा। तुम यादों और कल्पनाओं की अनलिमिट यात्रा पर निकल पड़ोगे । इसलिए ध्यान तो ‘इनकमिंग' का रास्ता है, 'आउटगोइंग' का नहीं। अगर किसी की याद को अपने में लेकर भीतर प्रवेश करोगे, तो आउटगोइंग, बहिर्यात्रा शुरू हो जाएगी, जबकि ध्यान भीतर की यात्रा है, अन्तर्यात्रा है । अपने में अपना प्रवेश, अपने में अपनी स्थिति - इसी का नाम ध्यान है । जब हम भीतर में प्रवेश करते हैं, तो हमें सबसे पहले अपने भटकाऊ मन का सामना करना पड़ता है। मन की चंचलता का उस वक्त अधिक अहसास होता है जब हम एकांत में बैठकर ध्यान करने को तत्पर होते हैं । सामान्य तौर पर भी मन तो हर वक्त भ्रमणशील ही रहता है, पर हम बाहर की गतिविधियों को सम्पादित करते रहते हैं, कभी कुछ बोलते रहते हैं, कभी कुछ सुनते रहते हैं, कभी खाते रहते हैं, कभी कुछ देखते रहते हैं, सो मन की धारा उसके साथ तादात्म्य बनाती रहती है। ध्यान में मन की चंचलता का इसलिए अहसास होने लगता है क्योंकि उस समय हम इन्द्रियों की बहिर्यात्रा पर विराम लगा देते हैं । न कुछ बोलते हैं, न खाते हैं, न देखते हैं, न सुनते हैं । उस समय तो हम भीतर-बाहर से मौन होने को कृतसंकल्प होते हैं । जैसे ही हम इन्द्रियों को विराम देते हुए अपने में प्रवेश करते हैं, तो कुछ क्षण में ही हमें मन के ऊहापोह का सामना करने को मिलता है । मन को ध्यान से जानिए स्वयं को ६९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003959
Book TitleShanti Pane ka Saral Rasta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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