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सचेतनता में छिपी है शांति की साधना
एक छोटी-सी कहानी निवेदन कर रहा हूँ । कुछ ग्रहण करने की ललक हो तो छोटी-सी कहानी या घटना से भी ज्ञान की कोई-न-कोई किरण सहज प्राप्त की जा सकती है । यह कहानी साधना के, शान्ति के मर्म को जीने और समझने के लिए प्रकाश की किरण का काम कर सकती है।
कहानी है राजकुमार श्रोण के जीवन से जुड़ी हुई । श्रोण संत बन चुका है। एक दफा वह आहारचर्या के लिए निकला। रास्ते में चलते-चलते वह सोचने लगा- 'बहुत तेज गर्मी पड़ रही है, पाँव जल रहे हैं, सिर तप रहा है। मैं आहार के लिए निकला हूँ, मगर अभी तक आहार कहीं नहीं मिला है।' न जाने श्रोण अपने विचारों में आहारचर्या के बारे में क्या-क्या सोचता जा रहा है और सड़क पर नंगे पाँव चलता चला जा रहा है ।
अचानक वह देखता है कि सामने से एक महिला आई है और उसने आकर कहा है, 'भन्ते! मेरी मालकिन ने आपको भोजन के लिए आमंत्रित किया है।' श्रोण प्रसन्न हुआ कि आहार के लिए ज्यादा भटकना न पड़ा। मैं सोच ही रहा था कि कोई ढंग का घर मिल जाए, तो भोजन ग्रहण कर तृप्त हो
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