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कर्मों की खेती कषाय और विषय-वासना के बदौलत होती है । राग और द्वेष कर्म के बीज हैं। कर्म जन्म-मरण का हलधर है । जन्म-मरण से ही दुःख की तिक्त तुम्बी फलती है । और, दुःख संसार की वास्तविकता है । मुनिजीवन वीतरागता का अनुष्ठान है । इसलिए यह संसार से दूरी है। 1 1
( मात्र बाह्य वेश परिवर्तन से आन्तरिक जीवन परिष्कृत नहीं हो सकता । बहिरङ्ग एवं अन्तरङ्ग की एक रूपता ही साधना की मौलिकता है ।
जीवन परिवर्तन के लिए अंतरदृष्टि को बदलना आवश्यक है। आचरण से अन्तस् नहीं बदला जा सकता, किन्तु अन्तस् के बदलते ही आचरण तत्क्षण बदलना शुरू हो जाता है ।
जीवन में सत्य का प्रगटन श्रद्धा से होता है, विश्वास से नहीं । विश्वास गोद लिया हुआ सत्य है और श्रद्धा जन्म दिया हुआ । विश्वास का जन्म तर्क और बुद्धि से होता है, किन्तु श्रद्धा, हृदयवीणा की झंकृति है । जब ज्ञान श्रद्धा के माध्यम से आचरण की पहल करता है, तब सम्यक् चारित्र का निर्माण होता है।
श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र की साधना अध्यात्मजगत में ब्रह्मा, विष्णु और शंकर की प्रतीकात्मक आराधना है । O
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