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धर्म, ज्ञान, संयम, निर्वाण ही निखिल लोक का नवनीत है। आत्मा की मौलिकताएँ प्रच्छन्न हैं। उन्हें अनावरित एवं निरभू करना ही जीवन में अध्यात्म की गुणवत्ता का आकलन है ।
सबके जीवन का ताना बाना समान हैं, किन्तु अनुभव एवं निष्कर्ष प्रत्येक मनुष्य के अलग-अलग होते हैं। जो निष्कर्ष नहीं निकाल पाते, उन्हें जीवन का पाठ पढ़ने के लिए पुनः लौटकर आना पड़ता है। पुनर्जन्म का यही रहस्य है।
आज का मनुष्य औसतन बुद्धि वाला है, इसलिए उसके पास चाबी तो है पर ताला नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति क्षमा और मुक्तिभावना का चिंतन करता है, किन्तु क्रोध और वासना का आचरण करता है, उसे समझदार नहीं कहा जा सकता।
मन में जितनी गहरी वासना है, उतनी ही गहरी मुक्ति की भावना होगी तभी पुनर्जन्म की जड़ उखड़ सकती है। जीवन का फूल सोये-सोये न मुरझा जाये, इसके लिए सावचेत रहना जीवन-कर्त्तव्य है। प्राप्त क्षण को बेहोशी में भुला बैठना वर्तमान को ठुकराना है। वर्तमान का अनुपश्यी ही अतीत के नाम पर भविष्य का सही इतिहास लिख पाता है। वर्तमान से हटकर केवल भूत-भविष्य के बीच जीवन को पेंडुलम की तरह चलाने वाला अधर में है। ।
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