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________________ ७६ कभी- N कहलाते। इतिहास असंख्य उदाहरणों से भरा पड़ा है । सारे एकत्रित कर दिये तो कबीर जी की प्राचार्य रामचन्द शुक्ल के अनुसार सुधक्कड़ी भाषा या खिचड़ी बन जायेगी । परन्तु अपने तो 'सूप सुभाव वाले" सार-सार को गही रहे, थोथा देइ उड़ाय ।" ला माँ की महानता बताते हुए एक बार नेपोलियन ने FRET ETT "Give me a good mother I will give you a good nation." माँ की ख्याति सर्वत्र व्याप्त है। वह सरोवर के समान शांत, आकाश की भाँति विशाल हृदया, संतों की तरह सहनशीला है। इन सब कारणों से ही तो धर्म ग्रथ गुणगान कहते कभी थकते नहीं। 'मात देवो भव' की भावना तो अपनी आर्य संस्कृति का प्राण है। कुरान का वचन पढ़ने के लिए अब हम जरा कुरान शरीफ की ओर बढ़ते है। हदीस शरीफ-"रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलेह सल्लम ने"'जेरे कदमे वाल्दा फिरदोसे वरी है'-'वाल्दा के चरणों में जन्नत है।' (माँ के पद पंकज के नीचे ही स्वर्ग है।) अतः धन, मन, तन से माँ की सेवा में लगना स्वर्ग को प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील होना है। एक बात और भी महत्वपूर्ण है कि हाथ की तर्जनी अंगुली के नीचे के स्थान मैं मातृतीर्थ होता है। हम देवी देवताओं की सेवा, भक्ति, प्रार्थना, नमस्कार पूजा आदि करते हैं। उनको प्रसन्न करने हेतु धर्माचरण करते हैं। वास्तव में सर्व देवी देवता या तीर्थों में उत्तम स्थान माँ का है । परन्तु प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में हम उसकी अवहेलना करते हैं। क्या यही कर्तव्य है ? नहीं। संतान मात्र का कर्तव्य है कि वह ऐसा कार्य न करे जिससे मां का जी दुःख पाये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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