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________________ लेकिन आज अधिकांश लोग मां के प्रेमोपकार से अनभिज्ञ, भ्रान्त, प्रभादी और निरपेक्ष होते हैं। विश्वपूज्य मानवतोन्नायक महावीर उन्हें कहते हैं "असंख्य जीवियं मा पमायए। जरोवणीयस्य हु नत्थि ताणं ।” तेरा जीवन असंस्कृत है। इसलिए प्रमाद मत कर “समयं गोयम मा पमायए"। जब प्रौढ़ावस्था का पदार्पण होगा तब ऐसे असंस्कृत व्यक्ति के जीवन की रक्षा करने वाला कोई नहीं होगा। क्योंकि जब बुढ़ापा घिर आयेगा तब तक माँ का देहान्त हो जायेगा। सुबह, दोपहर और सायं। बचपन, जवानी और बुढ़ापा प्रत्येक अवस्था में यह साथ देती है । इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि मां मानव के लिए सर्वदा प्रेरणा स्रोत रही है । समय असमय माँ ने अपनी प्रेरणा द्वारा विश्व के भाग्य को ही बदल डाला था। माँ ने सदैव कुमार्ग से बचाकर सुमार्ग पर प्रेरित किया है। ____ माँ द्वारा अपित क्षमा, शान्ति एवं प्रेम के दबाव में यह अनन्त शक्ति है कि उससे दबा हुआ व्यक्ति फिर कभी सिर नहीं उठाता और न आक्रमण करने आता है ! यह बात विश्व इतिहास से सहज समझी जा सकती है जो सरल व अनुभवगम्य भी है, फिर भी बुद्धिमान कहलाने वाले राजनीतिज्ञ इसे नहीं समझ पाते और शस्त्रास्त्र तैयार करके पागलों की भाँति एक दूसरे पर चढ़ बैठते हैं। जिसका नतीजा उनको माँ ही दिखा सकती है। मध्य में कहाँ युद्ध, राजनीतिक लोग टपक पड़े । भगाओ, इनकी खोपड़ी में तो गोबर भरा पड़ा है। यदि इनके मस्तिष्क का एक भी पुर्जा ढीला पड़ गया तो सारी दुनियां युद्ध के द्वारा स्वाहा समझो ! मैं मां से प्रार्थना करता हूं कि वह माँ, पत्नी बहन, साध्वी किसी भी रूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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