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________________ ४५ है। भैया ! भारतीय मुनि विद्यानंद जी ने कहा कि माता की सेवा करना पुत्र का प्रथम कर्त्तव्य है ।, हेमचन्द्राचार्य, हरिभद्र सूरि, श्रीमद्द्जिनदत्त सूरि, देवचन्द जी आदि सभी ने भी यही बात कही है । फिर मैंने उसको शिक्षा देते हुए एक गीत गुन गुनाया " दूसरा सभी कुछ भूल जाना, लेकिन माँ को भूलना नहीं । अगणित है उपकार उसके, यह बात कभी विसरना नहीं || असह्य वेदना सहन की उसने, तब तुम्हारा मुँह देखा सही । उस पवित्र आत्मा के हृदय पर, पत्थर बन चोट पहुंचाना नहीं || अपने मुँह का कौर खिलाकर तुमको इतना बड़ा किया। उस अमृत पिलाने वाली पर जहर कभी उछालना नहीं । बहुत लाड़ प्यार करके तुम्हारी सभी कामना पूरी की । मनोकामना पूर्ण करने वाली का उपकार कभी भूलना नहीं ॥ लाखों कमा लो हो भले तुम मगर माँ को शान्ति नहीं । वह लाख नहीं पर खाक है, इस बात को कभी भूलना नहीं || यदि संतान से सेवा चाहते हो तो संतान हो तुम सेवा करो । जो जैसा करता है वैसा भरता है इसबात को कभी भूलना नहीं ॥ गीले में स्वयं सोकर उसने सूखे में सुलाया तुम्हें । उसकी प्रमीमय आँखों को भूलकर कभी गीली करना नहीं ॥ फूल बिछाये हैं जिसने तुम्हारी सदैव राह पर । उस राहूबर की राह पर काँटे कभी बिछाना नहीं ॥ द्रव्य खरचने पर सब कुछ मिले किन्तु माँ तो मिलती नहीं । उसके पुनीत चरणों की सेवा जीवन में कभी भूलना नहीं ।" स्मरण रहे माँ खराब नहीं हैं । खराब हैं तो आप और आपकी पत्नी की भावनाएं इसी से माँ और आपके बीच का सम्बन्ध विषमिश्रित क्षीर का कटोरा बना हुआ है । कविवर जयशंकर प्रसाद ने कहा है कि " कुलवधू होने में जो महत्व है, वह है सेवा का न कि विलास का ।" मा. स. गोवलकर की 'विचार नवनीत' पुस्तक में लिखित वाक्य आज Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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