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________________ of a antiquity is to continue in a state of child hood all our days." ___ मनुष्य को महान बनाने के लिए उसे जीवन में आगे बढ़ने में सहायता देने में माँ एक रूप में प्लेटिनम् धातु सी कठोर है पर वही दूसरे रूप में मालती के फूल की तरह सुकुमार है । यही वह है, जिसके अन्दर मानव ने सर्वप्रथम अंकुरित होकर इस रंगीली अटपटी-चटपटी दुनियाँ की पहली सुनहली रश्मि की झलक नयनों से देखी। मेरी आपसे कुछ कहने की इच्छा है । मैं कहूँ उससे पूर्व ही...... मैं तो क्या एक भिखारी भी मानो भीख माँग कर, याचना कर उदर-पोषण करके आपको अति सुन्दर शिक्षा देता है। भिक्षुक का नाम लेते ही अवगतव्य घटित घटना मस्तिष्क में मंडलिक वायु की भांति घूम रही है। एक समय भू मण्डल को स्पर्श करते हुए अन्य संतों के संग तीर्थों का पर्यटन करने के लिए हम चल रहे थे। मार्ग में जर्जर शरीर वाला प्रौढ़ भिखारी बैठा था, उसी के समीप एक मानव-समूह दिखाई दिया। वहां वृक्ष की घनीभूत छाया थी ही । अकस्मात् मानव-समूह में से एक स्त्री की आवाज सुनाई दी। आवाज से ज्ञात हुआ कि यह स्वर एक वृद्धा का ही हो सकता है। शायद ये सभी इसी के सपूत हैं । हम सभी उनके निकट पहुंच गए । बेटा ! बहुत थक गई हूँ, जरा पैर दाबना तो-माँ बोली । 'अरी माँ ! तुम देख रही हो कि जितना तुम चली, उतना ही हम भी। जितनी थकावट तुम्हें महसूस हो रही है, उतनी ही मुझे एक बेटा बोला। पुत्र का प्रत्युत्तर सुनते ही मेरे मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे। आश्चर्य भी हो रहा था-क्या माँ ने पुत्र के इसी प्रकार के उत्तर के लिए अपने समूचे जीवन का कप्ट-भूमि पर बलिदान किया था ? आखिर ऐसा क्यों? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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