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________________ १३ नहीं जाते । जैसे गृह में बैठे सभी सामग्री प्राप्त होती उसी प्रकार यहां भी पाने लगे थे । अतः उन्हें साधु जीवन की इस कठिनाई का कोई अनुभव नहीं हुआ। __दूसरे मुनि तो कड़क धूप में भी शांति पूर्वक चल रहे हैं और मैं नहीं चल सकता यह तो कायरता है। ऐसा विचार प्रात्माभिमान अर्हन्नक मुनि को आया और वे भी मन को दृढ़ कर चलने लगे। किन्तु शरीर तो अभ्यासाधीन है, केवल मन में निश्चय करके ही शरीर से विचारा हुआ काम नहीं लिया जा सकता है। इस कठिन परीक्षा में प्रथम बार ही कैसे उतीर्ण हो सकते थे ? योग्य प्राथमिक विद्यालय के हैं और करना चाहते हैं विश्वविद्यालय उत्तीर्ण । असम्भव । अर्हन्नक मुनि की अभिलाषा होते हुए भी अागे चलने में अशक्त होने से अन्य मुनियों से पीछे रह गये । थोड़ा विश्राम लेने के लिए एक हवेली की शीतल छाया में जाकर खड़े हो गये। भवन के गवाक्ष में आसीन एक तरुण स्त्री जो उस घर की मालिक थी ने अर्हन्नक मुनि को इस दयनीय हालत में खड़ा देखा। उसने सहानुभूति पूर्वक मुनि को बुला लाने हेतु दासी को प्रेषित किया । ___मुनिराज ! ऊपर पधारिये ! दासी ने आकर करबद्ध प्रार्थना की। __ अर्हन्नक मुनि ने समझा भिक्षा देने हेतु बुलाती हैं अतः वे बिना कुछ बोले दासी के पीछे-पीछे चल पड़े। भवन में प्रविष्ट होते ही उसकी शीतलता से अर्हन्नक मुनि को अत्यधिक शान्ति प्राप्त हुई। कुतूहल से उत्सुकतापूर्वक अग्रसर हुए। वहां अनेक प्रकार के सुन्दर चित्र टंगे हुए थे। स्थान-स्थान पर फूलदान सजाये हुए थे, जिनमें से फूलों व इतर की सुगन्ध आ रही थी। दरवाजों पर खस-खस के परदे लटक रहे थे। जिनमें कर्मचारी-वर्ग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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