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________________ _ "मेरी यही इच्छा है कि इसे बन्धन मुक्त कर दिया जाए। मैं इसे क्षमा करती हूँ ।” ___ यह ऐसी माँ का दृष्टान्त है, जिसके दिल में दुश्मनों के प्रति भी उदारता व प्रेम है और इसी कारण ये माताएँ इतिहास की अमिट रेखाएँ बन गई। माँ ही प्रेम एवं प्रेम ही माँ है । अरे......! माँ के प्रेम-वात्सल्य को पाने के लिए उसकी गोद में क्रीड़ा करने का परम सौभाग्य तो सुर-सुरेन्द्र को भी दुर्लभ है। भव्य एवं अभव्य का निर्णय करने में भी उसका प्रेम सहायक होता है। जो अभव्य होता है वह उसके मन-वचन से वात्सल्य नहीं पा सकता। यह मान्यता देव देवेन्द्रों की मान्यता है। अरे ! माँ और मातृभूमि तो स्वर्ग-जन्नत से भी विशद श्रेष्ठ है। वर्तमान छायावादी कवि ने योग्य ही कहा है-"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्ग से महान है।" और प्राचीन युग में महर्षि बाल्मीकि ने भी तो कहा थाजननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि । अर्थर्ववेद में लिखा है कि भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ'-"माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः ॥" - माँ-प्रेम ! यह तो “सत्यं शिवं सुन्दरं", सार्वजनीनता, चिरन्तनता अनुभूति और आदर्श की समष्टि है। ___ सुन्दरियों का लावण्य जिस तरह हमें मुग्ध कर लेता है उसी तरह माँ के वचनामृत में निहित व्यंग्य भी हमें मुग्ध कर लेता है। फिर चाहे वह तिक्त हो या कट, कषायला हो अथवा अम्ल, मधुर हो या लवण । मुझे एक बार किसी ने कहा कि ईरान के सर्वश्रेष्ठ विचारक, नीतिज्ञ व कवि शेख-सादी ने कहा है "मां की ताड़ना, पिता के प्यार से अच्छी होती है।" उसके प्रेम में यही तो मजा है ! आनन्द है ! लम्बे जीवन के लिए आनन्द तो एक रसायन है। वास्तव में माँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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