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________________ उसी प्रकार से काललब्धि प्राप्त कर यह जीव व्यवहार राशि में आता है और विकास करते-करते मानव जीवन प्राप्त करता है। दुर्लभ मानवजीवन अनंत बार मिला। आज भी हम उसी जीवन मानव जीवन होते हुए भी जिसकी कुक्षी (कोख) से जन्म लिया, उसके प्रति अभी तक आपके हृदय में श्रद्धा जागृत नहीं हुई है । मन में श्रद्धा-दीपक प्रज्वलित करो और फिर उसी प्रकाशांश से देखो क्योंकि जिस प्रकार मानो तो गंगा माँ है, न मानो तो बहता पानी । प्रतिमा में प्रभु प्रतिष्ठापित है, न मानो तो पत्थर का टुकड़ा और माँ, प्रेम की अमर दूतिका है, न मानों तो हाड़-मांस का पुतला। माँ का पावन जीवनदर्शन समता, शुचिता, सत्य, स्नेह से लहराता हा सागर है। उसका जीवन और प्रेम, गंगा की निर्मल धारा सम पवित्र है। और इस प्रेम गंगा के अन्दर जो कोई स्नान करेगा, कर्ममैल से मुक्त होकर, एक दिन वह विश्वनाथ बन जायेगा। जीवन को शुद्ध पावन करने हेतु माँ गंगा समान है, जिसमें स्नान करने से मानव मानवता की पूर्णता को प्राप्त करता है। ___ "माता का हृदय दया का प्रागार है। उसे जलायो तो उसमें दया की ही सुगन्ध निकलती है। पीसो तो दया का रस निकलता है। वह देवी है। विपत्ति की क र लीलाएँ भी उस निर्मल स्वच्छ स्रोत को मलिन नहीं कर सकती"---प्रेमचन्द, जो हिन्दी उपन्यास सम्राट् व कहानीकार हैं, उनके यह शब्द आज भी मुझे याद हैं। वैसे भी अच्छा हृदय सोने के मूल्य का होता है। सर्वश्रेष्ठ अंग्रेज व नाटककार विलियम शेक्सपियर का कथन A good heart is worth gold सुप्रसिद्ध है। माँ के हृदय में क्षमा तिजोरी में धन की तरह भरा हुआ है और क्षमा शान्ति का मूल है। किसी ने उसे कष्ट दिया, हानि की, अपमान किया, कटु वचन कहे पर इस परम नारी माँ ने तो सबको क्षमा-दान दिया। मां को क्षमा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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