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________________ नास्तिक नहीं ।' माँ के द्वारा विश्व में सौहार्द्र, सत्य, त्याग, प्रेमादि और परस्परोपग्राही जीवानाम् जैसी उदार वृत्तियों की शुभ स्थापना होती है । सृष्टि में जन्म लेकर जो मनुष्य माँ के प्र ेम की रसधारा में अल्प समय के लिए भी निमग्न नहीं हुआ तो उसके जीवन को मरुस्थलीय यात्रा ही समझना चाहिए। क्योंकि : कथन क्रम अवगतव्य अपरिहार्य, जीव का ह्रास मनीषी संसार समुद्र में में निवास ॥ जहाँ जीव अनादि काल, अव्यवहार राशि में वास । वहां नहीं करता पुरुषार्थ, पश्चात् विपरीत विन्यास | यथा सरिता में अव्याहत, गति अनवरत जल - बहाव | प्रकृति का पत्थर गोल तथा व्यवहार राशि में प्रान, Jain Education International विकास | धर्माचार्य, सुरम्य प्रवाह, काल प्रभाव । कालब्धि कर चरम शिखर तक मानव जीवन प्राप्त । विकास, संप्राप्त ॥ (मेरी कविता, मानव जीवन कैसे प्राप्त ? ) अर्थात् - जीव के ह्रास विकास का क्रम क्या है ? अनादि काल से यह जीव संसार-सागर में बस रहा है । सर्वप्रथम यह अव्यवहार राशि में होता है, वहाँ कोई पुरुषार्थं नहीं करता । नदी के नीर के प्रवाह में जिस प्रकार कुछ पत्थर कालप्रवाह से गोल हो जाते हैं, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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