________________ FATEH REEHEREEEEEE प्राचार्य प्रवर 1008 श्री जिन कान्ति सागर सूरीश्वर जी महाराज लब्ध प्रतिष्ठ के सुशिष्य रत्न बायें से :- मुनि श्री चन्द्रप्रभ सागर जी, मुनि श्री महिमाप्रभ सागर जी म.. मुनि श्री ललितप्रभ सागर जी युवा मुनि श्री चन्द्रप्रभ सागर जी के चिन्तन के मुक्ताकणों से विलसित तथा अध्ययन से संचित ज्ञान-सम्पदा से सम्पृक्त विचारोत्तेजक कृति “माँ” का प्रकाशन आधुनिक भौतिकता प्रिय जीवन की धारा को मोड़ देने का सत्साहस पूर्ण मर्मस्पर्शी प्रयत्न और गहन चिन्तन के अनन्तर नवनीत सदृश्य तापहारी भावों का यह एकाकार रूप हैं। इसमें अन्तर्निहित सन्देश भी यही है कि माँ के चरणों में आस्था रखने वाला व्यक्ति विजयी होकर ही रहता है / पराजय उसे हरा नहीं सकती और विजय उसे सदा सुरभित हार पहनाती हैं / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org