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________________ | लडिओदइया (णं उदया) । अवविहोदय लेसा सन्नूसासे कसाए अ॥१५७॥ लक्षणमेर्व चेव उ पयरस्स असंखभागमित्ता उ । निक्खमणे य पवेसे एगाईयावि एमेव ।।१५८॥ निक्खमपवेसकालो समयाई इत्य आवलीभागो। अंतोमहत्तऽपिरहो उदहिसहस्साहिए दोषि ॥१५९॥दारी। मंसाई परिभोगो सत्वं सत्थाइयं अणेगविहं। सारीरमाणसा वेयणा य दविहा बहविहा य ॥१६०॥ दारं । मंसस्स केइ अट्ठा केई चम्मस्स केइ रोमाणं । पिच्छाणं पुच्छाणं ताणऽट्टा वहिज्जति ॥१६१॥ केई वहति अट्ठा केइ अणट्ठा पसंगदोसेणं । कम्मपसंगपसत्ता बंधति वहति मारंति ॥१६२॥ सेसाई दाराई ताई जाइं हवंति पुढवीए। एवं तसकार्यमी निजुत्ती कित्तिया एसा ॥१६३शा अ.१उ. ६॥ वाउस्सऽवि दाराई ताई जाई वंति पुढवीए। नाणत्ती उ बिहाणे परिमाणुवNIभोगसत्थे य॥१६४|| दुबिहा उ बाउजीवा सहमा तह वायरा उ लोगंमि। सुहुमा उ सबलोए पंचेव य बायरविहाणा ॥१६५॥ उकलिया १ मंडलिया २ गंजा ३ घणवाय४ सदबाया ५य। बायरवाउबिहाणा पंचविहा बण्णिया एए॥१६६॥ जद्द देवस्स सरीरं अंतद्धाणं व अंजणाईसु। एओवम आएसो वाएऽसंतेऽवि रूबंमि ॥१६७॥जे बायरपजत्ता पयरस्स असंखभागमित्ता ते। सेसा तिनिवि रासी वीसुं लोगा असंखिज्जा ॥१६८॥ दारं ॥ वियणधमणाभिधारण उस्सिचणफुमणआणुपाणू अ । बायरखाउक्काए उवभोगगुणा मणुस्साणं ॥१६॥ विअणे अतालियंटे सुप्प सियपत्त चेलकण्णे या अभिधारणा य बाहि गंधग्गी बाउसत्थाई ॥१७०॥ किंची सकाय०॥(अव्याख्या)। सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। एवं वाउहेसे निजुत्ती कित्तिया एसा ॥१७॥ उ.७ अ.१॥ सयणे य अदढत्त बीयगंमि माणो अ अत्थसारो । भोगेसू लोगनिस्साइ लोगे अममिज्जया चेव ॥१७२॥ लोगस्सय विजयस्स य गुणस्स मूलस्स तह् य ठाणस्स। निक्खेवो कायको जंमुलागं च संसारो॥१७३॥ लोगत्ति य विजअत्तिय अज्झयणे लक्खणं तु निफण्णं । गुणमूलं ठाणंति य सुत्तालावे य निष्फण्णं ॥१७४॥ लोगस्स य निक्खेवो अट्ठविहो छत्रिहो उ विजयस्स । भावे कमायलोगो अहिगारो तस्स विजएणं ॥१७५॥ लोगो भणिओ दवं खित्तं कालो अभावविजओ अ। भवलोग भावविजओ पगयं जह बज्झई लोगो॥१७६॥ विजिओ कसायलोगो सेयं खु तओ नियत्ति होइ। कामनियत्तमई खलु संसारा मुच्चई खिप्पं ॥१७७॥ दवे खित्ते काले फल पज्जव गणण करण अभासे । गुणअगुणे अगुणगुणे भव सीलगणे य भावगणे ॥१७८॥ दवगुणो दवं चिय गुणाण जं तंमि संभवो होइ। सचित्ते अचित्ते मीसंमि य होइ दबंमि ॥१७९॥ संकुचिय बियसियत्तं एसो जीवस्स होइ जीवगुणो। पूरेड हंदि लोगं बहुप्पएसत्तणगुणेण ॥१८॥ देवकुरु सुसममुसमा सिद्धी निभय दुगादिया चेव । कल भोअणुजु वंके जीवमजीवे य भावमि ॥१८१॥ मूले छकं दवे ओदइ उवएस आइमुलं च । खिने काले मूलं भावे मूलं भवे विविहं ॥१८२॥ ओदइयं उबदिट्ठा आइ विगं मूलभाव ओदइअं। आयरिओ उवदिट्ठा विणयकसायादिओ आई ॥१८३॥णामंठवणादविए खिनऽद्धा उडू उमरई वसही। संजम पग्गह जोहे अयल गणण संधणा भावे ॥१८४॥ पंचसु कामगुणेसु य सहप्फरिसरसरूवगंधसुं। जस्स कसाया बटुंति मूलढाणं तु संसारे ॥१८५॥ जह सबपायवाणं भूमीएं पइट्ठियाई मूलाई। इय कम्मपायवाणं संसारपइट्टिया मूला ॥१८६॥ अविकम्मरक्खा सो ते मोहणिजमूलागा। कामगुणमूलगं वा तम्मूलागं च संसारो॥१८७॥ दुविहो अहोइ मोहो दसणमोहो चरित्तमोहो अ। कामा चरित्तमोहो तेणऽहिगारो इह सुत्ते ॥१८८॥ संसारस्स उ मूलं कम्मं तस्सवि हुंति य कसाया। ते सयणपेसअस्थाइएसु अज्झत्थओ अ ठिआ॥१८॥ णामंठवणादविए उष्पत्ती पञ्चए य आएसो । रसभावकसाए या तेण य कोहाइया चउरो॥१९०॥ दो खित्ते काले भवसंसारे य भावसंसारे। पंचविहो संसारो जन्थेते संसरंति जिआ॥१९॥ दवे खित्ते काले भवसंसारे य भावसंसारे। कम्मेण य संसारो तेणऽहिगारो इहं सुत्ते॥(अव्याख्या)॥णामंठवणाकम्मं दबकम्मं पओगकम्मं च। समुदाणिरियावहियं आहाकम्मं तवोकम्मं ॥१९॥ किइकम्म भावकम्मं दसबिहकर्म समासओ होई। अट्टविहेण उ कम्मेण एत्य होई अहीगारो॥१९३॥ संसारं छत्तुमणो कम्म उम्मूलए तदट्ठाए। उम्मूलिन कसाया तम्हा उ चइज्ज मयणाई ॥१९४ामाया मेत्ति पिया मे भगिणी भाया य पुत्त दारा मे।अत्थंमि चेव गिहा जम्मणमरणाणि पावंति॥१९५॥अ०३उ०१॥बिइउद्देसे अदढो उ संजमे कोइ हुज अरईए। अनाणकम्मलोभाइएहि अज्झत्थदोसेहिं ॥१९६॥ अ०२॥ पढमे सुत्ता अस्संजयत्ति१ विइए दुहं अणुवंतिशतइएन हुदुक्खेणं अकरणयाए वसमणुत्ति३॥१९७॥ उद्देसंमि चउत्ये अहिगारो उबमणं कसायाणं। पावविरईओं निउणो उ संजमो इत्थ मुक्युत्ति॥१९८॥ नाम ठवणा सीयं दश्वे भाये य होइ नायचं । एमेव य उपहस्सवि चउचिहो होइ निक्खेवो ॥१९९॥ दो सीयलदर्य दवुहं चेव उण्हदव्वं तु । भावे उ पगलगणो जीवस्स गणो अणेगविहो॥२००॥सीय परीसहपमायुवसमविरई सुहं च उण्हं त। परिसहतवजमकसायसोगाहियेयारई दुक्खं ॥२०१॥ दारं ॥ इत्थी सकारपरीसहो य दो भावसीयला एए। सेसा वीसं उण्हा परीसहा हुँति नायचा ॥२०२॥ जे तिवप्परिणामा परीसहा ते भवंति उल्हा उजे मंदप्परिणामा परीसहा ते भये सीया ॥२०३॥ दारं ॥ धर्ममि जो पमायइ अन्थे वा सीअनुत्ति तं चिंति । उजुत्तं पुण अन्नं तत्तो उहंति णं विति ॥२०४॥ सीईभूओ परिनिछुओ य संतो तहेव पण्हाणो (ण्हाओ)। होउवसंतकसाओ तेणुवसंतो भवे जीवो ॥२०५॥ अभयकरो जीवाणं सीयघरो संजमो भवइ सीओ। अस्संजमो य उल्हो एसो अन्नोऽवि पजाओ ॥२०६॥ निशाणसुहं सीयं सीईभूयं पयं अणापाहै । इहमवि जं किंचि सुहं तं सीयं दुक्खमवि परेशर श्री आचारांग नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर ९३४१
SR No.003949
Book TitleAagam Manjusha N 01 Aayaro Nijjutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages10
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size8 MB
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