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श्रीपिण्डनियुक्तिः
लपिंडे उम्गम उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य। इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिजुत्ती ॥१॥ पिंड निकाय समूहे संपिंडण पिंडणा य समवाए। समुसरण १७ " निचय उपचय चए य जुम्मे य रासी य ॥२॥ पिंडस्स उ निक्खेवो चउकओ छक्कओ व कायो। निक्खेवं काऊणं परूवणा तस्स कायबा ॥३॥ कुलए य चउभागस्स संभवो छकए चउण्डं च। नियमेण संभवो अत्थि छक्कगं निक्खिवे तम्हा ॥४॥ नामंठवणापिंढो दवे खेत्ते य काल भावे या एसो खलु पिंडस्स उ निक्खेयो छबिहो होइ ॥५॥ गोण्णं समयकयं वा जं वावि हवेज तदुभएण कयं। तं चिंति नामपिंड ठवणापिंडं अओवोच्छं ॥६॥ गुणनिष्फलं गोणं तं चेव जहत्यम(स)त्थवी ति । तं पुण खवणो जलणो तवणो पवणो पईवो य ॥ भाष्यं१॥ पिंडण बहुदवाण पडिवक्खेणावि जत्थ पिंडक्खा । सो समयकओ पिंडो जह सुतं पिंडपडियाई ॥२॥ जस्स पुण पिंडवायट्ठयं पविट्ठस्स होइ संपत्ती। गुडओयणपिडेहिं तं तदुभयपिंडमाइंसु ॥३॥ उभयाइरित्तमहया अन्नपि हु अस्थि लोइयं नाम। अत्ताभिप्पायकयं जह सीहगदेवदत्ताई ॥४॥ गोण्णसमयारितं इणमन्नं वाऽवि सइयं नाम। जह पिंडउत्ति कीरइ कस्सइ नाम मणूसस्स ॥५॥ तुडेऽवि अभिप्पाए समयपसिद्धं न गिण्हए लोओ। जं पुण लोयपसिद्धं तं सामइया उवचरंति ॥ ६॥ भा। अक्खे वराडए वा कट्टे पुत्थे व चित्तकम्मे वा। सम्भावमसम्भावे ठवणापिंडं वियाणाहि ॥ ७॥ इको उ असम्भावे निण्हं ठवणा उ होइ सम्भावे। चित्तेसु असम्भावे दारुअलेप्पोकले. १२५५ पिंडनियुक्तिः -
मुनि दीपरनसागर