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________________ य॥५॥ अकुमार खयं जोणी विवरीयट्ठा णिवेसणं वावि। गम्मपए पायं वा जो कुण्ड मूलकम्मं तं ॥ ६१०॥ अधिई पुच्छा आसन्न विवाहे भिन्नकन्नसाहणया। आयमणपियणओसह अक्खय जज्जीवअहिगरणं ॥६॥ जंघा परिजिय सड्ढी अदिइ आणिजए मम सवत्ती। जोगो जोणुग्घाडण पडिसेह पोस उड्डाहो ॥ ७॥ मा ते फंसेज कुलं अदिजमाणा सुया वयं पत्ता। धम्मो यऽलोहियस्सा जइ बिंदु नत्तिया नरया ॥८॥ किं न ठविजह पुत्तो पत्तो कुलगोत्तकित्तिसंताणो। पच्छाविय तं कर्ज असंगहो मा य नासिज्जा ॥९॥ किं अदिइनि पुच्छा सवित्तिणी गम्भिणिनि से देवी। गम्भाहाणं तुझवि करोमि मा अद्धिई कुणसु॥५१०॥ जइवि सुओ मे होही तहवि कणिहोत्ति इयर जुवराया। देइ परिसाडणं से नाए य पओस प्रत्यारो॥१॥ संखडिकरणे काया कामपविनि च कुणइ एगत्थ। एगत्थुड्डाहाई जज्जिय भोगतरायं च ॥२॥ एवं तु गविट्ठस्सा उग्गम उप्पायणाविसुद्धस्स। गहणविसोहिविसुद्धम्स होइ गहर्ण तु पिंडस्स ॥३॥ उप्पायणाएँ दोस(सा) साहूउ समुट्ठिए वियाणाहि (या इमे भणिया)।गहण(दसए)सणाइ दोसे आयपर(गिहिसाहु)समुट्टिए चोच्छं ॥४॥ दोनि उ साहुसमुत्था संकिय नह भावओऽपरिणयं च। सेसा अडवि नियमा गिहिणो य समुट्ठिए जाण ॥५॥ नाम ठपणा दविए भाये गहणेसणा मुणयवा। दवे वानरजूहं भावंमि य दस पया इंति ॥ ६॥ पडि(रि)सड़ियपंडुपत्तं वणसंई द? अन्नहि पेसे। जूहवई पडियरए जूहेण समं तहिं गच्छे ॥ ७॥ सयमेवालोएउं जूहबई तं वणं समंतेण। वियरइ नेसि पयारं चरिऊण ओयरंतं पयं दद,नीह(उत्तरतं नदीसई। नालेण पियह पाणीय, नेस निकारणा दहा ॥ ९॥ संकिय मक्खिय निक्खिन पिहिय साहरिय दायगुम्मीसे। अपरिणय लित्त छड्डिय एसणदोसा दस हवंति ॥५२०॥ संकाए चउभंगो दोसुवि गहणे य मुंजणे लग्गो। जं संकियमावन्नो पणवीसाचरिमए सुद्धो॥१॥ उग्गमदोसा सोलस आहाकम्माइ एसणादोसा। नव मक्खियाइएए पणवीसा चरिमए सुद्धो॥२॥छउमत्थो सुयनाणी उक्उत्ता(गवेसए) उज्जुओ पयत्तेणं। आवन्नो पणवीसं सुयनाणपमाणओ ओहो सुओवउत्तो सुयनाणी जइवि गिण्हइ असुदं । तं केवलीवि भुंजइ अपमाण सुयं भवे इहरा ॥४॥ सुत्तस्स अप्पमाणे चरणाभावो तओ य मोक्खम्स । मोक्खस्सऽविय अभावे दिक्खपवित्ती निरत्था उ॥५॥ किंतु(ति)ह खदा भिक्खा दिजइ न य तरइ पुच्छिउँ हिरिमं । इय संकाए घेत्तु तं भुंजइ संकिओ चेव ॥६॥हियएण संकिएणं गहिओ अनेणं सोहिया सा य। पगयं पहेणगं वा सोउं निस्संकिओ भुंजे ॥७॥ जारिसय चिय लद्धा खद्धा भिक्खा मए अमुयगेहे। अन्नेहिवि तारिसिया वियडंत निसामए तइए॥८॥ जइ संका दोसकरी एवं सुद्धपि होइ अविसुद्धं । निस्संकमेसियंतिय अणेसणिजपि निहोसं॥९॥ अविसुद्धो परिणामो एगयरे अवडिओ य पक्खमि। एसिपि कुणइ णेसिं अणेसिमेसिं विसुदो उ ॥५३०॥ दुविहं च मक्खियं खलु सचित्तं चेव होइ अचित्तं । सचित्तं पुण तिविहं अचित्तं होइ दुविहं तु ॥१॥ पुढबी आउ वणस्सइ तिविहं सञ्चित्तमक्खियं होइ। अचित्तं पुण दुविहं गरहियमियरे य भयणा उ ॥२॥ मुकेण सरक्खेणं मक्खियमलेण पुढविकाएणं । सबंपि मक्खियं तं एत्तो आउंमि चोच्छामि ॥३॥ पुरपच्छकम्म ससिणिदुड़े चत्तारि आउभेयाओ । उकिट्ठरसालित परित्तऽणतं महिरहेसु ॥४॥ सेसेहि उकाएहिं तीहिवि तेऊसमीरणतसेहिं । सचित्तं मीसं वा न मक्खितं अस्थि उहं वा ॥५॥ सचित्तमक्खियंमि उ हत्थे मत्ते य होइ चउभंगो। आइतिए पडिसेहो चरिमे भंगे अणुन्ना उ॥६॥ अचित्तमक्खियंमि उचउसुवि भंगेसु होइ भयणा उ। अगरहिएण उगहणं पडिसेहो गरहिए होइ ।। ७॥ संसजिमेहि वजं अगरहिएहिंपि गोरसदवेहिं । महुघयतेलगुलेहि य मा मच्छिपिवीलियाघाओ ॥८॥ मंसवससोणियासव लोए वा गरहिएहिं विवज्जेज्जा। उभओऽवि गरहिएहिं मुत्तुचारेहि छिनपि ॥९॥ सचित्तमीसएसु दुविहं काएसु होइ निक्खित्तं। एकेक तं दुविहं अणंतर परंपरं चेव ॥५४०॥ पुढबीआउक्काएतेऊवाऊवणस्सइतसाणं। एक्केवक दुहाऽणंतर परंपरऽगणिमि सत्तविहा ॥१॥ सचित्तपुढविकाए सचित्तो चेव पुढवि निक्खित्तो। आऊतेउवणस्सइसमीरणतसेसु एमेच ॥२॥ एमेव सेसयाणवि निक्खेवो होइ जीवकायकाएमुं। एकेको सट्ठाणे परठाणे पंच पंचेव ॥३॥ एमेच मीसएसुवि मीसाण सचेयणाण निक्खेवो। मीसाणं मीसेसु य दोण्हंपिय होइ अचित्ते ॥४॥ जत्थ उ सचित्तमीसे चउमंगो तत्थ चऊसुवि अगिझं। तं तु अणंतर इयरं परित्तऽणतं च वणकाए ॥५॥ अहवण सचित्तमीसो उ एगओएगओउ अञ्चित्तो। एत्थवि चउकभंगो(बुकमभेओ) तत्थाइति(दु)एकहा नस्थि ॥६॥ जं पुण अचित्तदवं निक्खिप्पइ चेयणेसु मीसे(दो)सु। तहिं मरगणा उ इणमो अणंतरपरंपरा होइ॥७॥ ओगाहिमायणंतर परंपर पिढरगाइ पुढवीए। नवणीयाइ अणंतर परंपरं नावमाईसु ॥८॥ विज्झायमुम्मुरिंगालमेव अप्पत्तपत्तसमजाले। वोकते(लीणे) सत्तदुगं जंतोलित्ते य जयणाए ॥९॥ विज्झाउत्तिन दीसह अम्गी दीसेइ इंघणे छुढे । आपिंगल अगणिकणा मुम्मुर निज्जाल इंगाले ॥५५०॥ अप्पत्ता उचउत्थे जाला पिढरं तु पंचमे पत्ता। छढे पुण-कण्णसमा जाला समइच्छिया चरिमे ॥१॥ पासोलित्तकडाहे परिसाडी नस्थि तंपिय विसालं। सोऽविय १२६७ पिंडनियुक्तिः - मुनि दीपरत्नसागर R
SR No.003943
Book TitleAagam Manjusha 41B Mulsuttam Mool 02 B PindaNijjutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages18
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pindniryukti
File Size13 MB
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