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________________ उपडिलेहा ॥ ॥ नियमा उ दिदगाही जिणमाई गच्छनिग्गया होति। थेरावि दिट्ठगाही अदिवि करेंति उपओगं ॥२५१॥ भा०। णीयदुनाश्वओगे उड्डाह अवाउडा पदोसोय। ४ाहियनटुंमि य संका एमेव कबाइउग्घाडे ॥२॥ देहऽन्नसरीरेण व दारं पिहिअंजणा उलं वावि। इइडरपस्थियलिंदेण वावि पिहियं नहिं वाथि ॥३॥ एतेहि ऽदीसमाणे अम्गहणं अह व कुन उवओगं। सोनेण चक्खुणा घाणओ य जीहाएं फासेणं ॥४॥ हत्यं मनं च धूवे सहो उदकस्स अहव मत्तस्स। गंधे व कुलिंगाई तत्थेव रसो फरिसथिदू ॥ ५॥ सो होड दिदगाही * जो एते जुजई पदे सके। निस्संकिय निग्गमणं आसंकपयंमि संचिक्खे ॥२५६ ॥ मा० आगमणदायगस्सा हेडा उपरिं च होड जह पुधि। संजमआयविराहण दिवसो होइ बच्छ्रेण ॥८॥ पत्नम्स उ पडिलेहा हत्ये मने तहेव दवे या उनले ससिणि संसते व परियते ॥९॥ तिरिय उड्ढमहेविय भायणपडिलेहणं तु कायई। हत्यं मत्तं दधं तिथि 3 पत्नस्स प. | डिलेहा ॥२५७॥ भा० मा ससिणिद्धोदउले नसाउलं गिव्ह एगतर बटुं। परियत्तियं च मत्तं ससिणिदाईसु पडिलेहा ॥८॥ मा०पडिओ खलु बट्ठयो कित्तिम साहाविओ य जो | पिंडो। संजमायविराहण दिर्सेतो सिट्टिकम्बट्ठो॥४८०॥ गरविसअट्ठियकटय विरुवदमि होइ आयाए । संजमओ उकाया तम्हा पडियं विगिचिजा ॥१॥ अणभोगेण भएण य | पडिणी उम्मीस भन्नपार्णमि। दिजा हिरण्णमाई आवजण संकणा दिटे ॥२॥ उक्खेवे निक्खेवे महालया लुबया वहो दाहो। अचियत्ने वोच्छेओ छक्कायवहो य गुरुमने ॥३॥ गुरुदबेण व पिहिअं सयं व गुरुयं हवेज जं दवं। उक्खेवे निक्खेवे कडिभंजण पाय उवरि वा ॥९॥ भा०। महालेण देहि मा डहरएण भिन्ने अहो इमो यो । उभएगतरे व वहो दाहो अचुह एमेव ॥२६०॥ बहुगहणे अचियत्तं वोच्छेओं तदन्नदा तस्सविय । छकायाण य वर्ण अइमत्ते तंमि मत्तंमि ॥२६१॥ मा तिविहो य होइ कालो गिम्हो हेमंत तह य वासामु। निविहो य दायगो खलु थी पुरिस नपुंसओ चेव ॥ ४ ॥ एकिकोविअ तिविहो तरुणो तह मज्झिमो य थेरो य। सीयतणुओ नपुंसो सोम्हित्थी मज्झिमो पुरिसो ॥५॥ पुरकम्मं उदा ससिणिदं नपि होइ तिविहं तु। इक्विकपिय तिविहं सचित्ताचित्तमीसं तु ॥६॥ आइदुवे पडिसेहो पुरओ कय ई तु तं पुरेकम्मै । उदउवाबिंदुसहिअं ससिणिदे मग्गाणा होइ ॥ ७॥ ससिणिबंपिय तिविहं सचित्ताचित्तमीसगं चेव। अचित्तं पुण ठप्प अहिगारो मीससञ्चित्ते ॥८॥ पठाण किंचि अडाणमेव किंधिच होअणुवाण। पाएण हि य(न)स एककहाणी य वुड्ढी य॥९॥ सत्तविभागेण कर विभायइत्ताण इस्थिमाईण। निन्नुभयइयरेविय रेहा पवे करतले य ॥४९०॥ जाहे य उन्नयाई उत्राणाई हवंति हत्थस्स । ताहे नाल पत्राणा लेहा पुण होतऽणुशाणा ॥१॥ तरुणित्यि एकभागे पवाणे होइ गहण गिम्हासु। हेमंते दोसु भवे तिसु पहाणेसु वासासु ॥२॥ एमेव मज्झिमाए आढन दोसु ठायए चउम्। तिम आढत्तं घेरी नवरि टाणेसु पंचसु उ ॥३॥ एमेव होइ पुरिसो दुगाइछट्ठाणपज्जवसिएसुं । अपुमं तु तिभागाई सत्तमभागे अवसिते उ॥४॥ दुविहो य होइ भावो लोइय लोउत्तरो समासेणं । एकिक्कोविय दुविहो पसत्थओ अप्पसत्यो य ॥५॥ सझिलगा दो वणिया गामं गंतृण करिसणारंभो। एगस्स देहमंडणवाउसिआ भारिया अलसा ॥ ६॥ मुहयोवण देतवर्ण अहागाईण काल आवास । पुषण्हकरणमप्पण उक्कोसयरं च मज्मण्हे ॥७॥ तणकडहारगाणं न देइ न य दासपेसवम्गस्स। न य पेसणे निउंजइ पलाणि हिय हाणि गेहस्स ॥८॥ बिइयस्स पेसवगं वावारे अनपेसणे कम्मे। काले देहाहार सयं च उवजीवई इड्ढी ॥९॥ वन्नवलरूवहेडं आहारे जो तु लाभि लभंते। अतिरेगं न उ गिण्हइ पाउम्गगिलाणमाईणं ॥५०० ॥ जह सा हिरण्णमाइसु परिहीणा होइ दुक्खाभागी। एवं तिगपरिहीणा साहू दुक्खस्स आभागी ॥१॥ आयरियगिलाणट्ठा गिण्ह न महंति एव जो साहू। नो वकारूचहेर्ड आहारे एस उ पसत्थो ॥२॥ उम्गमउप्पायणएसणाएँ बायाल होंति अवराहा। सोहेउं समुयाणं पडुपन्ने वचए वसहिं॥३॥ मुन्नघरदेउले बा असई य उपस्सयरस या दारे।लनकंटगाई सोहेउमुवस्सगं पविसे ॥४॥ संसत्तं तत्तो चिय परिद्ववेत्ता पुणो दर्व गिण्हे। कारण मत्तयगहियं पडिग्गहे छोटु पविसणया ॥५॥ गामे य कालमाणे पचमाणे हवंति भंगऽट्ट। काले अपहुप्पंते नियत्तई सेसए भयणा ॥६॥ अण्णं च वए गाम अणं भाणं व गेण्ह सइ काले। पढमे बितिए छप्पंचमे य भय सेस य नियते ॥ ७॥ बोसिठ्ठमागयाणं उमासिय मत्तए य भूमितियं । पडिलेहियमत्यमणं सेसऽत्थमिए जहनो उ ॥८॥ भुत्ते वियारभूमी गयागयाणं तु जह य ओगाहे । चरमाएँ पोरिसीए उक्कोसो सेस मज्झिमओ ॥९॥ पायप्पमजण निसीहिया य तिन्नि उ करे पवेसंमि। अंजलि ठाणविसोही दंडग उवहिस्स निक्खेवो ॥५१॥ एवं पटुपन्ने पविसओ उ तिन्नि व निसीहिया होति। अग्गहारे मज्ने पवेस य सागरिए ॥२६२॥ भाका हत्थुस्सेहो सीसप्पणामणं वाइओ नमोकारो। गुरुभायणे पणामो वायाएं नमो न उस्सेहो ॥३॥ उरिहट्ठा य पमजिऊण सहि ठवेज सद्गाणे । पई उबहिस्सुवरि भायणवत्याणि भाणेसु॥४॥ जइ पुण पासवणं से हवेज तो उम्गहं सपच्छागं। दाउं 3 ४॥ जब पुण पासवणं से हवेज तो उग्गहं सपच्छागं। दाउं अन्नस्स सचोलपट्टओ काइयं निसिरे ॥२६५॥ भागबउगुल मुहपत्ती उज्जुयए वामहत्यि स्यहरणं । वोसट्टचत्तदेहो काउस्सर्ग करेजाहि ॥१॥ चाउरंगुलमप्पत्तं जाणुगहेट्ठा छिवोवरिं नाहिं। उभओ कोप्परधरिअं करेज पढें च पडलं बा ॥६॥ भा०। पुबुदिढे ठाणे १२३५ ओघनियुक्तिः - मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003942
Book TitleAagam Manjusha 41A Mulsuttam Mool 02 A OhNijjutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages25
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_oghniryukti
File Size18 MB
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