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य उवधाओ। नीसंकियं च पायंमि गिण्हणे इहरहा संका ॥ ९॥ जइ ते इत्युवधाओ आणिजंतम्मि होइ लेबम्मि । पडिलेहणाइ चिट्ठा तम्हा उ न काइ कायशा ॥ २६ प्र० । चोएड पुणो लेवं आगेउं लिंपिऊण तो हत्थे। अच्छउ धारेमाणो सहवनिक्वेवपरिहारी ॥ २०० ॥ एवं होउवधाओ आताए संजमे पत्रयणे य। मुच्छाई पवडते तम्हा उन सोसए हत्थे ॥ १ ॥ भा० । दुविहाय होंति पाया जुन्ना य नवा य जे उ लिप्यंति जुने दाएऊणं लिंपइ पुच्छा य इयरेसिं ॥ ८ ॥ पाडिच्छगसेहाणं नाऊणं कोइ आगमणमाई। दढलेवेवि उ पाए लिंपइ मा एस देजेना ॥ ९॥ अहवावि विभूसाए लिंपइ जा सेसगाण परिहाणी अपडिच्छणे य दोसा सेहे काया अओ दाए ॥ २०२ ॥ भा० पुइण्ह लेवदाणं लेवम्ाहणं सुसंवरं काउं। लेवस्स आणणालिंपणे य जयणा विही वोच्छं ॥ ३८० ॥ पुण्ह लेवगणं कार्हति चउत्थगं करेजाहि असहू वासिअभत्तं अकारऽलंभे य दिंतियरे ॥३॥ भा०। कयकितिकम्मो छंदेण उंदिओ भणइ लेवऽहं घेत्तुं । तुमंपि अस्थि अट्टो ? आमं तं कित्तिअं किं वा ? ॥ १ ॥ सेसेचि पुच्छिऊ कय उस्सग्गो गुरुं पणमिऊणं । महगरूवे गिण्हद्द जइ तेसिं कपिओ होइ ॥ २ ॥ गीयत्थपरिग्गाहि अयाणओ रूवमलए घेतुं । छारं च तत्थ वच गहिए तसपाणरक्खट्टा ॥ ३ ॥ वचतेण य दिई सागारिदुचकगं तु अभासे । तत्थेव होइ गहणं न होइ सो सागरिअपिंडो ॥ ४ ॥ गंतुं दुचकमूलं अणुन्नवेत्ता पहुंति साहीणं एत्थ य पहुत्ति भणिए कोई गच्छे निवसमीवे ॥ ५ ॥ किं देमित्ति नरवई? तुझं खरमक्खिआ दुचकेति । सो अ पसत्थो लेबो एत्थ य भतरे दोसा ॥ ६ ॥ तम्हा दुचकत्रइणा तस्संदिट्टेण वा अणुन्नाए। कडुगंधजाणणट्टा जिंघे नासं तु अफुसंता ॥ ७॥ हरिए बीए चले जुत्ते, वच्छे साणे जलट्ठिए। पुढबी संपाइमा सामा, महवाते महियाऽमिए ॥ ८ ॥ हरिए बीएस तहा अणंतरपरंपरेविय चउक्को आया दुपयं च पतिट्टियंति एत्यंपि चउभंगो ॥ २०४ ॥ भा० दवे भावे य च दर्शमि दुपइट्टिअं तु जं दुपयं आया य संजमंमि अ दुविहा उ विराहणा तत्थ ॥ ५ ॥ भावचलं गंतुमणं गोणाई अंतराइयं तत्थ जुत्तेवि अंतरायं वित्तस चलणे य आयाए ॥ ६ ॥ वच्छो भएण नासइ मंडिक्खोमेण आयवावत्ती आया पत्रयण साणे काया य भएण नासंति ॥ ७ ॥ जो चेत्र य हरिए सो चेव गमो उ उदगपुढवी संपाइमा तसगणा सामाए होइ चउभंगो ॥ ८ ॥ वाउंसि वायमाणे संपयमाणे वा तसगणेसु नाणुन्नायं ग्रहणं अमियरस य मा विगिंचणया ॥ २०९ ॥ भा० एयहोसविभुकं घेत्तुं छारेण अकमित्ताणं। चीरेण बंधिऊणं गुरुमूल पडिकमालोए ॥ ९ ॥ दंसि अच्छंदिअगुस्सेसएस ओमस्थियस्स भाणस्स काउं चीरं उवरिं रूयं च भेज तो लेवं ॥ ३९० ॥ अंगुट्टपएसिणिमज्झिमाए घेत्तुं घणं तओ चीरं आलिंपिऊण भाणे एकं दो तिष्णि वा पट्टे ॥ १॥ अनोऽनं अंकमि उ अन्नं घट्टेइ वारवारणं । आणेइ तमेव दिणं दवं रएडं अभत्तट्टी ॥ २ ॥ अभट्टियाण दार्ड अनेसि वा अहिंडमाणाणं हिंडेज असंथरणे अस धेनुं अरइयं तु ॥ ३ ॥ न तरेजा जड़ तिष्णि हिंडावेउं तओ य छारेणं उच्चुण्णेउं हिंडइ अन्ने य द सि गेव्हंति ॥ ४ ॥ लेत्थारियाणि जाणि उ घट्टगमाईणि तत्थ लेवेणं। संजमफाइनिमित्तं ताई भूईइ गुडेजा ॥ ५ ॥ एवं लेवग्गणं आणयणं लिंपणा य जयणा य । भणियाणि अतो वोच्छं परिक्रम्मविहिं तु लेवस्स ॥ ६ ॥ लित्ते छगणिअछारो घणेण चीरेणऽवंघिउं उन्हे अंछण परियन्त्तण घट्टणे य धोत्रे पुणो लेवो ॥ ७ ॥ दाउँ सरयत्ताणं पत्ताबंधं अबंधणं कुज्जा। साणाइरक्खणट्टा पमज छाउण्डसंकमणा ॥ २१० ॥ तद्दिवसं पडिलेहा कुंभमुहाईण होइ काया छन्ने य निसं कुता कयकजाणं विउस्सग्गो ॥ २११ ॥ भा० अट्टगहेडं लेवाहियं तु सेसं सरूवगं पीसे अहवावि नत्थि कर्ज सरुवमुज्झे तओ विहिणा ॥ ८ ॥ पदमचरिमा सिसिरे गिम्हे अयं तु तासि वजेबा पायं ठवे सिणेहातिरक्खणडा पवेसो वा ॥ ९॥ उवओगं च अभिक्खं करेइ वासाइरक्खणट्टाए। वावारेइ व अन्ने गिलाणमाईसु कज्जेसु ॥ ४०० ॥ एको व जहस्रेणं दुग तिग चत्तारि पंच उकोसा। संजमहेउं लेबो बजित्ता गारवविभूसा ॥ १ ॥ अणुवर्द्धते तहवि हु सयं अवणिन्तु तो पुणो लिंपे। तजाय सचोप्पडगं घट्टगरइयं ततो धोवे ॥ २ ॥ तजायजुतिलेवो खंजणलेवो य होइ बोद्धशो मुद्दिअनावाबंधो तेणयबंधेण पडिकुट्टो ॥ ३ ॥ जुत्ती उ पत्थराई पडिकुट्टो सो उ सन्निही जे णं दय सुकुमार असन्निहि खंजणलेवो अओ मणिओ ॥ ४ ॥ संजमहेउं लेवो न विभूसाए वदंति तित्थयरा सइ असइ य दितो सद् साहम्मे उबणओ उ ॥ ५ ॥ भिजिज्ज लिप्यमाणं लित्तं वा असइए पुणो बंधो। मुद्दिअनावाचंधो न तेणएणं तु बंधिना ॥ ६ ॥ खरजयसिकुसुंभसरिसव कमेण उकोसमज्झिमजहन्ना नवणीए सप्पिवसा गुडेण लोणेणऽलेबो उ ॥ ७ ॥ पिंड निकाय समूहे संपिडण पिंडणा य समयाए । समोसरण निचय उपचय चए य जुम्मे य रासी य ॥ ८ ॥ दुविहो य भावपिंडो पसत्थओ होइ अप्पसत्यो य दुगसत्तट्टचउक्कग जेणं वा बज्झए इयरो ॥ ९ ॥ तिविहो होइ पसत्थो नाणे तह दंसणे चरिते य। मोत्तूण अप्पसत्ये पसत्यपिंडेण अहिगारो ॥ ४१० ॥ लित्तंमि भायणमि उ पिंडस्स उवम्गहो उ कायशो जुत्तस्स एसणाए तमहं वोच्छं समासेणं ॥ २१२ ॥ भा०| नामं ठवणा दविए भावंमि य एसणा मुणेयञ्वा दर्शमि हिरण्णाई गवेसगहभुंजणा भावे ॥ १॥ पमाण काले आवस्सए य संघाडए य उपकरणे। मत्तग काउसग्गो जस्स य जोगो सपडिवक्खो ॥ २ ॥ दुहिं होइ पमाणं कालं भिक्खा पवेसमाणं च सन्ना भिक्खायरिआ भिक्खे दो काल पढमदा ॥ २१३ ॥ भा० । आरेण भद्दपंता भदग उवण भंडण पदोसा दोसीणपउरकरणं ठवियगदोसा य भईमि ॥ ४॥ अदागऽमंगलं वा उम्भावण खिंसणा हृणण पंते फिडिउग्गमे य ठविया भदगचारी किलिस्सणया (३०८) १२३२ ओघनिर्युक्तिः
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मुनि दीपरत्नसागर