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॥७॥ सुबहुँपि मुयमहीयं किं काही चरणविष्पहीण(मुक)स्स । अंधस्स जह पलित्ता दीवसयसहस्सकोडीवि ॥ ८॥ अप्पंपि सुषमहीयं पयासयं होइ चरणजुत्तस्सा इकोवि जह पईवो सचक्सुअस्स प्पयासेइ ॥९॥जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी नहु चंदणस्स। एवं खु नाणी चरणेण हीणो, नाणस्स भागी नहु सोग्गईए॥१००॥ हयं नाणं कियाहीणं, हया अन्नाणओ किया। पांसतो पंगुलो दड्ढो, धावमाणो अ अंधओ॥१॥ संजोगसिद्धीइ फलं वयंति, न हुएगचक्केण रहो पयाइ। अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं ।।। पविट्ठा ॥२॥णाणं पयासगं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हंपि समाजोगे मोक्खो जिणसासणे मणिओ ॥३॥ भावे खओक्समिए दुवालसंगपि होइ सुयनाणं। केवलियनाणलंभो नऽनत्य खए कसायाणं ॥४॥ अट्ठण्डं पयडीणं उक्कोसठिईइ वट्टमाणो उ। जीवो न लहइ सामाइयं पउण्डंपि एगयरं ॥५॥ सत्तण्हं पयडीणं अभितरओ उ कोडिकोडीए। काऊण सागराणं जइ लहइ चउण्हमण्णयरं ॥६॥ पल्लय गिरिसरिउवला पिवीलिया पुरिस पह जरग्गहिया। कुद्दव जल वत्थाणि य सामाइयलाभदिट्ठन्ता ॥७॥ पदमियाण उदए नियमा संजोयणा कसायाणं । सम्मइंसणलंभं भवसिद्धीयाविन लहंति ॥८॥ बिइयकसायाणुदए अपचक्खाणनामधेजाणं। सम्मईसणलंमं विरयाचिरई न उ लहति ॥९॥ तइयकसायाणुदए पचक्खाणावरणनामधिजाणं । देसिकदेसविरई चरित्तलंभं न उ लहति ॥११०॥ मूलगुणाणं लंभं न लहइ मूलगुणघाइणं उदए। संजलणाणं उदए न लहइ चरणं अहक्खायं ॥१॥ सत्वेऽविअ अइयारा संजलणाणं तु उदयओ हुँति । मूलच्छिज पुण होइ बारसण्हं कसायाणं ॥२॥ वारसविहे कसाए खइए उवसामिए व जोगेहिं । लम्भइ चरित्तलंभो तस्स विसेसा इमे पंच ॥३॥ सामाइयं च पदम छेओवट्ठावणं भवे वीयं । परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च॥४॥ तत्तो य अहक्खायं खायं सबंमि जीवलोमि। जं चरिऊण सुविहिआ वचंतऽयरामरं ठाणं ॥५॥ अण दंस नपुंसित्थी वेयच्छकं च पुरुसवेयं च। दो दो एगन्तरिए सरिस सरिस उवसमेह ॥ ६॥ लोभाणु वेअंतो जो खलु उवसामओ व खवगो वा। सो सुहमसंपराओ अहखाया ऊपओ किंची ॥७॥ उवसामं उवणीआ गुणमहया जिणचरित्तसरिसंपि। पडिवायंति कसाया किं पुण सेसे सरागत्थे ? ॥८॥ जइ उवसंतकसाओ लहइ अणंतं पुणोऽवि पडिवायं । ण हु मे वीससियवं थेवे य(वि) कसायसेसंमि ॥९॥ अण यो वण थोवं अम्गीथोवं कसाय योवं चाण हु मे वीससियावं येपि हुतं पहुं होई ॥१२०॥ अण मिच्छ मीस सम्मं अट्ठ नपुंसित्थी वेयछकं च। पुंवेयं च खचेड़ कोहाईए य संजलणे ॥१॥ गइ आणुपुधि दो दो जाईनामं च जाव चाउरिंदी। आयावं उजोयं थावरनामं च सुहुमंच ॥२॥ साहारणमपजत्तं निहानिहं च पयलपयलं च। थीणं खवेइ ताहे अवसेस जं च अट्टण्हं ॥३॥ वीसमिऊण नियंठो दोहि उ समएहिं केवले सेसे । पढमे निहं पयलं नामस्स इमाउ पयडीओ ॥४॥ देवगइआणुपुची बिउवि संघयण पढमवजाई। अन्नयरं संठाणं तित्थयसहारनामं च ॥५॥ चरमे नाणावरणं पंचविहं ईसणं चउवियप्पं। पंचविहमंतराय खबइत्ता केवली होइ॥६॥ संभिण्णं पासंतो लोगमलोगं च सवओ सत्रं । तं नस्थि जंन पासइ भूयं भवं भविसं च ॥७॥ जिणपवयणउप्पत्ती पवयणएगट्ठिया विभागो य। दारविही य नयविही वक्वाणविही य अणुओगो ॥८॥ एगट्ठियाणि तिष्णि उ पवयण मुत्तं तहेव अत्यो । इकिकस्स य इत्तो नामा एगडिआ पंच ॥९॥ सुयधम्म तित्य मग्गो पावयणं पक्यणं च
एगट्ठा। सुत्तं तंतं गंथो पाढो सत्यं च एगट्ठा ॥१३०॥ अणुओगो य नियोगो भास विभासा य बत्तिय चेव। अणुओगस्स उएए नामा एमट्ठिा पंच॥१॥णामं ठवणा दविए खित्ते नकाले य वयण भावे । एसो अणुओगस्स उणिक्खेवो होइ सत्तविहो ॥२७ वच्छग गोणी सुज्जा सझाए चेव बहिरउल्लायो। गामिडए यषयणे सत्तेव य हुँति भावमि ॥३॥ साव
गभजा सत्तवइए अकुंकणगदारए नउले। कमलामेला संबस्स साहसं सेणिए कोवो॥४॥ कढे पुत्थे चित्ते सिरिघरिए पुंड देसिए चेव। भासग विभासए या बत्तीकरणे अ आहरणाS ॥५॥ गोणी चंदणकंथा चेडीओ सावए बहिर गोहे। टंकणओ ववहारो पडिवक्खो आयरियसीसे ॥ ६॥ कस्स न होही वेसो अणम्भुवमओ अ निरुवगारी अ । अप्पच्छंदमईओ पट्ठि. अओ गंतुकामो अ॥७॥ विणओणएहिं कयपंजली(पंजलिउडे)हिं उंदमणुअत्तमाणेहि। आराहिओ गुरुजणो सुर्य बहुविहं लहुं देह ॥ ८॥ सेलघण कुडग चालिणि परिपूणग हंस महिस मेसे अ। मसग जलूग बिराली जाहग गो भेरि आभीरी ॥९॥ उद्देसे निदेसे निग्गमे खित्त काल पुरिसे आकारण पश्य लक्षण नए समोआरणाऽणुमए ॥१४०॥ किं कइविह कस्स कहि केसु कहं केचिरं हवा कालं। कइ संतरमविरहि भवागरिस कोसण निरुत्ती ॥१॥ नाम ठवणा दविए खेते काले समास उदेसे । उद्देसुरेसंमि अभावमि अहोइ अट्ठमओ ॥२॥ एमेव य निदेसो अट्ठविहो सोऽवि होहणायचो। अविसेसिअमुद्देसो बिसेसिओ होइ निसो॥३॥ विपि णेगमणओ णिरेसं (दिङ)संगहो य ववहारो। निदेसगमजसो उ. मयसरित्यं च सहस्स॥नाम ठवणा दविए खित्ते काले तहेव भावे। एसो उ निग्गमस्सा णिक्खेवो उचिहो होइ॥५॥ पंथं किर देसित्ता साइणं अडविविप्पणवाणं। सम्मत्तप ढमलंभो बोदो बदमाणस्स ॥६॥ अवरविदेहे गामस्स चिंतओ रायदावणगमणं । साहू भिक्खनिमित्तं सत्या हीणे तहिं पासे ॥१॥ भाष्यं । दाणऽन पंचनः गं अणुकंप गुरूक११७८ आवश्यक सनिर्यु- सूक्तिकं मूलसूत्र -निर्धान
मुनि दीपरत्नसागर