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________________ जाणमु जाणणासुदं ॥२५१॥ किनकम्मस्स विसोही पउंजई जो अहीणमहरितं । मणवयणकायगुत्तो तं जाणसु विणयओ सुद्धं ॥२॥ अणुभासह गुरुवयणं अक्खरपयर्वजणेहि परिमुद्धं। पंजलिउडो अभिमुहो तं जाणऽणुभासणासुदं ॥३॥ कंतारे दुम्भिक्खे आयके वा महई समुप्पने। जं पालियं न भग्गं तं जाणऽणुपालणासुद्धं ॥४॥ रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दृसियं जं तुतिं खलु पञ्चक्खाणं भावविसुदं मुणेय ॥५॥ एएहिं छहि ठाणेहिं पञ्चक्खाणं न दृसियं जं तु। तं सुदं नायव्वं तप्पडिवकरखे असुदं तु ॥६॥ यंभा कोहा अ. हा विउ पमाणं ॥२५७॥ भाष्यं । सरे उग्गए णमोकारसहितं पच्चक्खाति चाउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइम हसाकारेणं वोसिरामि ५१ असणं पाणगं चेव, खाइम साइमं तहा। एसो आहारविही, चाउविहो होइनायव्यो॥१६८३॥ आसं म्युहं समेई असणं पाणाणुवग्गहे पाणं। खे माइ खाइमंति य साएइ गुणे तओ साई ॥४॥ सबोऽविय आहारो असणं सबोऽवि बुच्चई पाणं। सोऽवि खाइमंतिय समोऽविय साइम होइ॥५॥ जइ असणमेव सर्च पाणग अविवजणंमि सेसाणं । हवइ ण सेसविवेगो तेण विहत्ताणि चउरोऽचि॥६॥ असणं पाणगं चेव, खाइमं साइमं तहा। एवं परूवियंमी, सहहिउँ जे मुहं होइ ॥७॥ अन्नत्थ निवडिय बंजणमि जो खलु मणोगओ भावो। तं खलु पञ्चक्खाणं न पमाणं बंजण छलणा ॥८॥ फासियं पालियं चेव, सोहियं तीरियं तहा। किट्टिअमाराहि चेब, एरिसयंमी पयइयत्वं ॥ ९॥ पञ्चक्खाणंमि कए आसवदाराई हुंति पिहियाई। आसवबुच्छेएणं तण्हावुच्छेअणं होई ॥१६९०॥ तोहाबोच्छेदेण य अउलोवसमो भवे मणुस्साणं । अउ. लोवसमेण पुणो पञ्चक्खाणं हवद सुद्धं ॥ १॥ तत्तो चरित्तधम्मो कम्मविवेगो तओ अपुर्व तु। तत्तो केवलनाणं तओ अ मुक्खो सयासुक्खो ॥२॥ नमुकारपोरिसीए पुरिमड्ढेगासणेगठाणे य। आयंबिल अभत्तट्टे चरमे य अभिमाहे विगई ॥३॥ दो उब सत्त अट्ठ यसत्तऽट्टयपंच छच पाणंमि। चउ पंच अट्ट नवय पत्तेयं पिंडए नवए॥४॥ दोचव नमुकारे आगारा छच्च पोरिसीए उ। सत्तेव य पुरिमड्ढे एगासणगंमि अट्टेव ॥ ५॥ सत्तेगट्ठाणस्स उ अद्वैवायंविलंमि आगारा। पंचेव अभत्तढे छप्पाणे चरिमि चत्तारि॥६॥ पंच चउरो अभिग्गहि निधीए अट्ट नव य आगारा। अप्पाउराण पंच उर्वति सेसेसु चत्तारि ॥१६९७॥ पोरुसि पचक्खाति उग्गते सूरे चउविहंपि आहारं असणं० अण्णत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साधुवयणेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ५२एकासणमित्यादि, अण्णस्य अणाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं आउंटणपसारणेणं गुरुअन्भुट्टाणेणं पारिद्वाव. णियागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरति ।५३३'नवणीओगाहिमए अहवदवपिसियघयगले चेव । नव आगारा तेसि सेसदवाणं च अट्टेव ॥१६९८॥ णिपियनियं पचक्खातीत्यादि, अनत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं गिहत्यसंसट्टेणं उक्खित्तविवेगेर्ण पडुचमक्खिएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारणं बोसिरति 1५४॥ 'गोनं नाम तिविहं ओअण कुम्मास सत्तुआ चेव। इकिकंपिय तिविहं जहन्नयं मज्झिमुक्कोसं ॥९॥ दवे रसे गुणे वा जहन्नयं मज्झिमंच उकोसं । तस्सेव य पाउम्गं छन्रणा पंचेच य कुडंगा ॥१७००॥ लोए येए समए अनाणे खलु तहेव गेलचे। एए पंच कुडंगा नायबा अंबिलंमि भवे ॥१॥ पंचेव य खीराई चत्तारि दहीणि सपि नवणीता। चत्तारि य निहाई दो वियढे फाणिए दुनि॥२॥ महुपुग्गलाई तिनि उ चलचलओगाहिमं तुजं पफै। एएसिं संसर्ल्ड वुच्छामि अहाणुपुधीए॥३॥ खीरदहीवियढाणं चत्तारि उ अंगुलाई संसहूं। फाणियतिलघयाणं अंगुलमेगं तु संसहूँ ॥४॥ महुपुग्गलरसयाणं अबंगुलयं तु होइ संसट्ठ । गुलपुग्गलनवणीए अदामलयं तु संसर्दु ॥५॥ आयंबिलमणयंबिल चउद्धा बालबुड्ढसहुअसहू। अणहिंडियहिंडियए पाहुणयनिमंतणाऽऽवलिया ॥६॥ विहिगहियं विहिभुत्तं उपरियं जं भवे असणमाई। तं गुरुणाऽणुनायं कप्पइ आयंबिलाईणं ॥७॥ (विहिगहिअं विहिभुत्त) नह गुरुहिं (जं भवे) अणुमायं । ताहे बंदणपुवं भुंजइ से संदिसावेउं (पाठान्तरम् ॥१॥)। चाउरो य हुंति भंगा पढमे भंगमि होइ आवलिया। इत्तो यतइयभंगो आवलिया होइ नायव्वा ॥८॥ पञ्चक्खाणेण कया पञ्चक्खावितएवि सूयाए (उ)। उभयमवि जाणगेअर चउभंगो गोणिदिद्रुतो ॥९॥ मूलगुणउत्तरगुणे सब्वे देसे य तहय सुदीए। पचक्खाणविहि पञ्चक्खाया गुरु होई ॥१७१०॥ किइकम्माइविहिचू उवओगपरो य असदभावो य। संविग्गयिरपइनो पचक्खाविंतओ भणिओ ॥१॥ इत्थं पुण चउभंगी जाणगइअरंमि गोणिनाएणं। सुद्धासुद्धा पढमंतिमा उ सेसेसु अ विभासा ॥२॥ दव्वे भावे य दुहा पचक्खायव्वयं हवइ दुविहं । दब्बंमि य असणाई अन्नाणाई य भावंमि ॥३॥ सोउं उचट्ठियाए विणीयऽवक्खित्ततदुवउत्ताए। एवंविहपरिसाए पचाखाणं कहेयव्वं ॥४॥ आणागिझो अत्थो आणाए चेव सो कहेयव्यो। दिटुंतिउ दिटुंता कहणविहिविराहणा इअरा ॥५॥ पञ्चकखाणस्स फलं इह परलोए ज होइ दुविह तु। इहलोइ धम्मलाई दामन्नगमाइ परलोए ॥६॥ पचखाणमिणं सेविऊण भावेण जिणवरुदिहूँ। पत्ता अणंतजीवा सासयसुक्खं लहुं मुक्खं ॥७॥ नायंमि गिहिपो अगिहियामि चेव अत्यंमि। जइयब्वमेव इइ जो उवएसो सो नओ नाम ॥८॥ सम्बेसिपि नयाणं बहुविहवत्तवयं निसामित्ता। तं सवनयविसुदं जं चरणगुणडिओ साहू १२१९ आवश्यक सनियु- सूक्तिक मूलसूत्र, नित + अhirvis मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003941
Book TitleAagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages47
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size34 MB
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