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________________ जह करगओ निर्मित दारुं इंतो पुणोवि वच्चतो इअ कंर्तति सुविहिआ काउस्सग्गेण कम्माई ॥ २४१॥ भा० । काउस्सग्गे जह सुट्टियस्स भजंति अंगमंगाई। इय भिदंति सुविहिया अडविहं कम्मसंघायं ॥ ८ ॥ अनं इमं सरीरं अन्नो जीवृत्ति एवं कयबुद्धी। दुक्खपरिकिलेसकरं छिंद ममत्तं सरीराओ ॥ ९ ॥ जावइया किर दुक्खा संसारे जे मया समणुभूया इत्तो दुत्रिसहतरा नरएसु अणोवमा दुक्खा ॥ १६५० ॥ तम्हा उ निम्ममेणं मुणिणा उवलदसुत्तसारेणं । काउस्सग्गो उग्गो कम्मखयट्टाय कायच्वो ॥१॥ काउस्सग्गज्झयणं ५ ॥ पचखाणं पञ्चखाओ पचक्वेयं च आणुपुत्रीए । परिसा कहणविही या फलं च आईइ छन्भेया ॥ २ ॥ नामं ठवणा दविए अइच्छ पडिसेहमेव भावे य एए खलु छन्भेया पञ्चक्खामि नायवा ॥ २४२ ॥ भा० । दवनिमित्तं ददवभूओ व तत्थ रायसुआ अइछापचक्खाणं बंभणसमणा न ( अ ) इच्छन्ति ॥ ३ ॥ अमुगं दिजउ मज्झं नत्थि मम तं तु होइ पडिसेहो। सेसपयाण य गाहा पच्चक्खाणस्स भावमि ॥ ४ ॥ तं दुविहं सुजनोसुअ सुयं दुहा पुत्रमेव नोपुवं । पुत्रस्य नवमपुषं नोपुवसुर्य इमं चैव ॥ ५ ॥ नोसुअपच्चक्खाणं मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य। मूले सङ्घं देतं इत्तरियं आवकहियं च ॥ ६ ॥ भा० मुलगुणावि य दुबिहा समणाणं चैव सावयाणं च ते पुणे विभजमाणा पंचविहा हुंति नायडा ॥ प्र० ३७॥ पाणिवह मुसावाए अदन मेहुण परिग्गहे चेव । समणाणं मूलगुणा तिविहंतिविहेण नायवा ॥ २४७ ॥ भा० ॥ सावयधम्मस्स विहिं वृच्छामी धीरपुरिसपन्नत्तं जं चरिऊण सुविहिया गिहिणोवि सुहाई पार्वति ॥ ३ ॥ साभिगाय निरभिग्गा य आहेण सावया दुविहा ते पुणे विभज्जमाणा अडविहा हुंति नायव्वा ॥ ४ ॥ दुविहतिविहेण पढमो दुविहंदुविण चीयओ होइ। दुविहंएगविहेणं एगविहं चैव तिथि ॥ ५ ॥ एगविहं दुविहेणं इक्किक्कविहेण छट्टओ होइ। उत्तरगुण सत्तमओ अविरयओ चेव अट्टमओ ॥ ६ ॥ पणय चउक्कं च तिगं दुगं च एगं च गिव्हइ वयाई। अहवाऽवि उत्तरगुणे अहवाऽवि न गिव्हए किंची ॥ ७ ॥ निस्संकिय निक्कंखिय निष्वितिमिच्छा अमूढदिट्ठी य वीरवयणमि एए बत्तीसं सावया भणिया । १६५८॥ पंचमणुवयाणं इकगदुगतिगचउक्कपणएहिं पंचगदसदसपणइक्कगे य संजोग कायव्वा ॥ प्र०३८ ॥ वयगिक्कगसंजोगाण हुंति पंचन्ह तीसई भंगा। दुगसंजोगाण दसह तिन्नि सट्टा सया हुंति ॥ ९ ॥ तिगसंजोगाण दसह भंगसया इक्कवीसई सट्टा चउसंजोगाण पुणो चउसडिसयाणिऽसीयाणि ॥ ४० ॥ सतुत्तरं सपाई उसत्तराई च पंच संजोए उत्तरगुण अविश्य मेलियाण जा हि सगं ॥१॥ सोलस चेव सहस्सा अट्ठ सया चेव होंति अट्ठहिया। एसो उवासगाणं वयगहणविही समासेणं ॥ प्र०४२ ॥ तत्थ समणोवासओ पुवामेत्र मिच्छत्ताओ पडिकमइ सम्मत्तं उवसंपजड़, नो से कप्पड़ अजप्पभिई अन्नउत्थि अदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमसित्तए वा पृष्ठिं अणालनएणं आलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउँ वा अणुप्पयाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं, से य सम्मत्ते पसत्यसमत्तमोहणीयकम्माणुवेयणोवसमवयसमुत्थे पसमसंत्रेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते, सम्मत्तस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियच्चा न समायरिया, तंजासंका कंखा वितिमिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसंथवे । सू० ३६ । थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पचक्लाइ, से पाणाइवाए दुविहे पन्नत्ते तंजहा संकल्पओ अ आरंभओ अ, तत्थ समणोवासओ संकल्पओ जावजीवाए पचक्खाइ, नो आरंभओ, थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा० तंजहा बंधे बहे छविच्छेए अइभारे भत्त पाणवुच्छेए | सू० ३७। धूलगमुसावायं समणोवासओ पञ्चकखाइ, से य मुसाबाए पंचविहे पं० तं० कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, धूलमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच० तंजहा सहसऽम्भक्खाणे रहस्सम्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे २। ३८। अदत्तादाणं समणो० से अदिन्नादाणे दुविहे पन्नत्ते तंजा.स. चित्तादत्तादाणे य अचित्तादत्तादाणे अ, धूलादत्तादाणवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियवा० तंजहा तेनाहडे तकरपओगे विरुद्धरज्जाइकमणे कूडलकूडमाणे तप्पडिरुवगववहारे । ३९। परदारगमणं समणोवासओ पञ्चक्खाति सदारसंतोसं वा पडिवज्जइ, से य परदारगमणे दुबिहे पन्नत्ते तंजहा- ओरालियपरदारगमणे य वेडवियपरदारगमणे य, सदारसंतोसस्स समणोवा • इमे पंच० तंजहा अपरिग्गहियागमणे इत्तरियपरिग्गहियागमणे अणंगकीडा परविवाहकरणे कामभोगतिवाभिलासे । ४०] अपरिमियपरिग्गहं समणो इच्छाप रिमाण उवसंपजह से परिग्गहे दुविहे पं० तंजहा सचित्तपरिग्गहे य अचित्तपरिग्गहे य, इच्छापरिमाणस्स समणो इमे पंच० धणधन्नपमाणाइकमे खित्तवत्थुपमाणाइकमे हिरण्णसुवण्णपमाणाइकमे दुपयचउप्पयपमाणाइकमे कुवियपमाणाइक्कमे । ४१ । दिसिवाए तिविहे पण्णत्ते तंजहा उढदिसिवाए अहोदिसिवए तिरियदिसिवाए, दिसिवयस्स समणो० इमे पंच० तंजहा उढदिसिपमाणाइक्कमे अहोदिसिपमाणाइक्कमे तिरियदिसिपमाणाइक्कमे खित्तवुढी सइअंतरद्धा । ४२ । उपभोगपरिभोगवए दुविहे पण्णत्ते तंजहा भोअणओ कम्मओ अ, भोजणओ समणोवा० इमे पंच० सचित्ताहारे सचित्तपडिवदाहारे अप्पउलिओसहि भक्खणया दुप्पउलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभ० । ४३ । कम्मओ णं समणोवा ० १२१७ आवश्यक सनिर्यु- सूक्तिकं मूलसूत्रं निमित + अज्सथाणे-६ ७ मुनि दीपरत्नसागर क
SR No.003941
Book TitleAagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages47
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size34 MB
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