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________________ सू०२१ इणमेव निग्गंर्थ पावयणं सचं अणुत्तरं केवलियं पडिपुण्णं नेआउयं संसुदं सलगत्तणं सिद्धिमग मुत्तिमग्गं निजाणमग्गं निशाणमगं अवितहमविसंधि सञ्चदुक्खप्पहीणमम्गं इत्थं ठिया जीवा सिझति बुज्झति मुचंति परिनिवायति सजदुक्खाणमंत करेंति सू०२रात धम्म सहहामि पत्तियामि रोएमि फासेमि (पालेमि)अणुपालेमि तं धम्म सदहतो पत्तिअंतो रोयंनो फासंनो (पात्रो) अणुपान्तो नस्स धम्मस्स (केवलिपन्नत्तस्स) अन्भुडिओ मि आराहणाए विरओ मि विराहणाए असंजमं परिआणामि संजमं उपसंपज्जामि अचंभ परिक्षा. णामि बर्भ उवसंपजामि अकप्पं परियाणामि कप्यं उवसंपजामि अण्णाणं परिआणामि नाणं उवसंपजामि अकिरियं परियाणामि किरियं उपसंपज्जामि मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उपसंपजामि अबोहि परिआणामि बोहिं उपसंपजामि अमग परियाणामि मग उवसंपज्जामि । ०२३१ ज संभरामि जं च न संभरामि जं पटिकमामि जंचन पडिकमामि तस्स सबस्स देवसियस्स अइयारस्स पडिकमामि समणोऽहं संजयविरयपडिहयपञ्चक्खायपावकम्मे अनियाणो दिद्विसंपण्णो मायामोसविवजिओ । मु.२४) अढाइजेसु दीवसमुहेसु पारसमु कम्मभूमीसु जावंत केई साहु स्यहरणगुच्छपडिग्गहधारा पंचमहत्वयधारा अट्ठारससहस्ससीलंगधारा अक्खयायारचरित्ता ते सो सिरसा मणसा मत्थएण बंदामि । सू० २५॥ 'खामेमि सबजीवे, सोजीचा खमंतु मे।मेती मे सबभूएसु, वरं ममं न केणइ ॥८॥ सूत्रगा|एवमहं आलोइय निन्दिय गरहिय दगंछियं सम्मतिविहेण पडिकतो वदामि जिणे चउवीस । सूत्रगा०९॥पडिक्कमणझयणं ४॥आलोयण पडिकमणे मीस विवेगे तहा विउस्सग्गे । तब छेय मूल अणवट्ठया य पारंचिए चेष॥१५१५॥ दुविहोकायंमि वणो तदुम्भवागंतुओ यणायो। आगंतुकस्स कीरइ साइबरणं न इयरस्स ॥६॥ तणुओ अतिक्खतुंडो असोणिओ केवलं तए(या)लग्गो। उदरिउँ अवउज्म(णिज)ति सलोन मलिजावणो उ ॥ ७॥ लग्गुद्धियंमि बीए मलिजद परमअदूरगे साते। उदरणमलणपूरण दूरवरगए तइयगंमि ॥८॥ मा वेअणा उ तो उद्धरितु गालंति सोणिय चउत्थे। जाइ लहुंति चिट्ठा वारिजह पंचमे पणिणो ॥९॥ रोहेइ वणं उद्धे हियमियभोई य मुंजमाणो वा। तित्तिअमित्तं छिजद सत्तमए पूइमसाइ ॥१५२०॥ तहविय अठायमाणो गोणसखइआइ रुप्फए पावि। किरह तवंगच्छेओ सअडिओ सेसरक्खट्ठा ॥१॥ मूलत्तरगुणरुवस्स ताइणो परमचरणपुरिसस्स। अबराहसलपभवो भाववणो होइ नायत्रो ॥ प्र०२८॥ भिक्खायरियाइ सुज्झाइ अइयारो कोइ वियडणाए उ। पीओ असमिओमित्ति कीस सहसा अगुत्तो वा ? ॥२॥ सदाइएसु रार्ग दोसं च मणा गओ तइयगंमि। नाउँ अणेसणिजं भत्ताइविगिचण चउत्थे ॥३॥ उस्सरोणपि सुसाइ अइयारो कोइ कोइ उ तवेणं । तेणवि असुजामाणं डेयविसेसा विसोहिति ॥४॥ निक्खेवेगविहाणमम्गणाकालभेयपरिमाणे । असढसढे विहिदोसा कस्सत्ति फलं च दाराई ॥५॥ काए उस्सगंमि दुनि उविगप्पा। एएस दुण्हपी पत्तय परुवर्ण बुच्छ ॥२३२शाभानकायस्स उ निक्खेवोबारसओ छकओ य उस्सगे। एएसित पयाण पत्तेय परुवर्ण वच्छ॥६॥ नाम । 2ठवण सरीरे गई निकायस्थिकाय दविए ये। माउय संगह पजय भारे तह भावकाए य ॥७॥ काओ कस्सह नाम कीरह देहोवि बुच्चई काओ। कायमणिओवि बुबह पदमवि निका- यमाहंसु ॥८॥ अक्खे बराडए वा कडे पुत्थे य चित्तकम्मे य। सम्भावमसम्भावे ठवणाकार्य वियाणाहि ॥९॥ लिप्पगहत्थी हस्थित्ति एस सम्भाविया भवे ठवणा। होइ असम्भावे पुण |हत्यित्ति निरागिई अक्खो ॥१५३०॥ओरालियवेउवियआहारगतेयकम्मए चेव। एसो पंचविहो खलु सरीरकाओ मुणेयको ॥१॥ चउसुवि गईसु देहो नेहयाईण जो स गहकाओ। | एसो सरीरकाओ विसेसणा होइ गइकाओ०२९॥ जेणुवगहिओवचइ भवंतरं जञ्चिरेण कालेण। एसो खलु गइकाओ सतेयगं कम्मगसरीरं ॥२॥ निययमहिओ व काओ जीवनिकाओ निकायकाओ य। अस्थिति बहुपएसा तेणं पंचस्थिकाया उ ॥३॥ जंतु पुरक्खडभावं दवियं पच्छाकडं व भावाओ। त होइ दबदवियं जह भविओ दवदेवाई ॥२३३॥ भा०। जह अस्थिकायभावो अप(इय)एसो हुज अस्थिकायाण । पच्छाकडुन तोते हविज दवस्थिकाया व ॥२३४|| भा०। तीयमणागयभावं जमस्थिकायाण नस्थि अस्थित्तं । तेन र केवलएK नत्थी दवस्थिकायत्तं ॥४॥ कामं भवियसुराइसु भावो सो चेव जत्थ वद्देति। एस्सो न ताव जायइ तेन र ते दवदेवृत्ति ॥५॥ दुहओऽणंतररहिया जइ एवं तो भवा अणनगुणा। एगस्स एग| काले भवा न जुजति उ अणेगा ॥६॥ दुहओऽर्णतरभवियं जह चिट्ठाइ आउअं तुजं बद्धं । हुजियरेसुवि जइ तं दवभवा हुज तो तेऽवि ॥ ७॥ संझासु दोसु सूरो अदिस्समाणोऽवि पप्प समईयं। जह ओभासइ खित्तं तहेब एयंपि नायत्रं ॥८॥ माउयपयंति नेमं नवरं अन्नोवि जो पयसमूहो। सो पयकाओ भन्नइ जे एगपए बहू अत्था ॥२३५॥ भाग संगहकाओ णेगाऽवि जत्थ एगवयणेण पिप्पंति। जह सालिगामसेणा जाओ वसही (ति) निविद्रुत्ति॥९॥पज्जवकाओ पुण हुंति पजवा जत्थ पिंडिया बहवे। परमाणुमिविकमिवि जह वन्नाई अर्णतगुणा ॥१५४०॥ एको काओ दुहा जाओ एगो चिट्ठइ एगों मारिओ। जीवंतो मएण मारिओ तं लव माणब ! केण हेउणा?॥१॥ दुग तिग चाउरो पंचव भावा बहुआ व जत्य बटुंति। सो होइ भावकाओ जीवमजीवे विभासा उ ॥२॥ काये सरीर देहे बुंदी यचय उवचए य संघाए। उस्सय समुस्सए वा कलेवरे भत्थ तणु पाणू ॥३॥ नामं ठवणा दपिए खित्ते श१२१३ आवश्यकं सनियु- सूक्तिकै मूलसूत्रं, yिari+ 2017 मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003941
Book TitleAagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages47
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size34 MB
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