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________________ ॥। १४०० ॥ मरुयच्छे जिणदेवो मयंतमित्ते कुणालमिक्स् य पठाण सालवाहण गुग्गुलभगवं च जहवा (वाह) णो ॥ १ ॥ वारवई बेयरणी धन्वंतरि भविय अभविए विजे। कहणा य पुच्छि यमिय गइनिडेसे व संबोही ॥ २ ॥ सो वानरजूहवई कंतारे सुविहियाणुकंपाए। भासुरवरबोंदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ ॥ ३ ॥ वाराणसीय कोट्ठे पासे गोवाल भदसेणे व नंदसिरी पउमसिरी रायगिहे सेणिए वीरो ॥ ४ ॥ बारवह अरहमित्ते अणुदरी चैव तहय जिणदेवो रोगस्स य उप्पत्ती पडिसेहो अत्तसंहारो ॥५॥ उज्जेणि देवलासुय अणुरता लोयणा य पउमरहो। संगय ओम ऽणुमइया असियगिरी अद्धसंकासा ॥ ६ ॥ कोडीवरिस चिलाए जिणदेवो रयणपुच्छ कहणा य साएए सनुंजे वीरकहणा य संगोही ॥ ७ ॥ वाणारसी य जयरी अणगारे धम्मघोस धम्मजसे । मासस्स व पारणए गोउल गंगा व अणुकंपा ॥। १४०८ ॥ करकंडु कलिंगेसुं. पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया विदेहेसु. गंधारेसु य णगती ॥ २०९॥ भा० । वसभे य इंदकेऊ बलए अंबे य पुष्फिए बोही। करकंडु दुम्मुहस्सा नमिस्स गंधाररो य ॥२१०॥ भा० । सेयं सुजायं सुविभत्तसिंगं, जो पासिया वसभं गोडुमज्झे। रिद्धि अरिद्धिं समुपेहियाणं, कलिंगरायाचि समिक्ख धम्मं ॥ १ ॥ गोगणस्स मज्झे टेक्कियसद्देण जस्स भजंति। दित्तावि दरियवसहा सुतिक्ख सिंगा समत्यादि ॥ २॥ पोराणय गयदप्पो गलंतनयणो चलंत बस (ककु) भोडो। सो चेव इमो वसो पढ्यपरिघट्टणं सहइ ॥ ३ ॥ जो इंदकेउं समलंकियं तु दद्धं पडतं पविलुप्पमाणं रिद्धिं अरिद्धिं समुपेहियाणं, पंचालरायावि समिक्ख धम्मं ॥ ४ ॥ बहुवाणं सदयं सोचा, एगस्स य असद्दयं वलयाणं नमी राया, निक्खतो मिहिलाहिवो ॥ ५ ॥ जो व्यरुक्खं तु मणाहिरामं समंजरि पल्लवपुष्फचित्तं रिद्धि अरिद्धिं समुपेहियाणं, गंधाररायावि समिक्ख धम्मं ॥ २१६ ॥ भा० । जहा जलंबाई कट्ठाई, उवेहाइ चिरं जले। घट्टिया घट्टिया झत्ति, तम्हा सहसु घट्टणं ॥ १४०९ ॥ सुचिरंपि कुडाई होहित अणुपमजमाणाई करमहिदारुयाई गयंकुसागारमेंटाई ॥१४१०॥ रायगिह् मगहसुंदरि मगसिरी पउमसत्थपक्खेवो। परिहरिय अप्पमत्ता नहं गीयं नविय चुका ॥१॥ पत्ते वसंतमासे आमोअ पमोअए पचत्तंमि । मुत्तूण कण्णिआरए भमरा सेवंति चूअकुसुमाई ॥ २॥ मरुयच्छंमि य विजए नडपिडए वासवास नागघरे ठवणा आयरियस्सा सामायारीपउंजणया ॥३॥ नगरं च सिंगवण मुंडि (अ) त्रय अजपूसभूई य। आयावण पूसमित्ते सुद्दमे झाणे विवादो य ॥४॥ रोहीडगं च नयरं ललियागुडी य रोहिणी गणिया धम्मरुइ कटुअदुद्धियदाणाइयणे य कम्मुदए ||५|| नगरी य चंपनामा जिणदेवो सत्यवाह अहिछत्ता अडवी य तेण अगणी सावय संगाण वोसिरणा ॥ ६ ॥ पायच्छित्तपरूवण आहरणं तत्थ होइ घणगुप्ता आराहणाऍ मरुदेवा ओसप्पिणीए पढमसिद्धो ॥ १४१ ॥ । जोगसंगहा। तेत्तीसाए आसायणाहिं सू०१८) पुरओ पक्खाऽऽसने गंता चिटुण निसीयणाऽऽयमणे । आलोयण पडिसुणणा पुालवणे य आलोए ॥६८॥ ( संग०) तह उपदंस निमंतण खढाइयणे तह य अपडिमुणणे । खद्धति य तत्थ गए कि तुम तजाइ जो सुमणे ॥९॥ णो सरसि कहं छेत्ता परिसं भित्ता अणुट्टियाइ कहे। संथारपायघट्टण चिट्ठे उच्चासणाईस (च्चसमासणे यावि) ॥७०॥ अहवा अरिहंताणं आसायणादि सज्झाएँ किंचि नाहीये जा कंठसमुद्दिद्वा तेत्तीस सायणाए या (हाँति ) ॥ ७१ ॥ (संग०) पडिकमणसंग्रहणी ॥ अरिहंताणं आसायणाए सि वाणं आसायणाए आयरियाणं आसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए साहूणं आसायणाए साहुजीणं आसायणाए साबयाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए इहलोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए केवलिपन्नत्तस्स धम्मस्स आसायणाए सदेवमणुयासुरस्त लोगस्स आसायणाए सवपाणभूयजीवसत्ताणं आसायगाए कालस्स आसायणाए सुबस्स आसायणाए सुयदेवयाए आसायणाए वायणायरियस्स आसायणाए [सू० १९ । जं वाइदं वच्चामेलियं हीणक्खरं अचक्खरं पयहीणं (चिणयहीणं घोसहीणं जोगीणं) सुरु दिनं दुद पडिच्छियं अकाले कओ सज्झाओ काले न कओ सज्झाओ असज्झाइए सज्झाइयं सज्झाए न सज्झाइयं तस्स मिच्छामि दुकडं [सू० २० | देवादीयं लोयं विवरीयं भणइ सत्त दीवुदही तह कइ पयावईणं पयईपुरिसाण जोगो वा ॥ २१७ ॥ भाष्यं उत्तरं सत्तसु परिमिय सत्ता मोक्खो सुण्णत्तणं पयावइ य केण कउत्तगवत्था पयडीए कहूं पवित्तित्ति ? ॥८॥ जमचेयणत्ति पुरिसत्थनिमित्तं किल पवत्तत्ती सा य तीसे चिय अपविती परोति स चिय विरुद्धं ॥ २१९ ॥ भा० । असज्झाइयनिज्जुत्ति वृच्छामी धीरपुरिसपण्णत्तं । जं नाऊण सुविहिया पवयणसारं उवलहंति ॥ १४१८॥ अस्सज्झायं तु दुविहं आयसमुत्थं च परसमुत्वं च जं तत्य परसमुत्यं तं पंचविहं तु नायहं ॥ ९ ॥ संजमघाउप्पा(वधा) ए सादिशे वुग्गहे य सारीरे घोसणय मिच्छरण्णो कोई छलिओ पमाएणं ॥ १४२० ॥ मिच्छभय घोसण निवे हियसेसा ले उ दंडिया रण्णा एवं दुहओ दंडो सुर पच्छित्ते इह परे अ ॥ १ ॥ राया इह तित्थयरो जाणवया साहु घोसणं सुत्तं । मेच्छो अ असज्झाओ रयणधणाई व नाणाई ॥ २ ॥ थोवावसेसपोरिसिमज्झयणं वावि जो कुणइ सो उ णाणाइसारसहियस्स तस्स छलणाउ संसारो ॥ ३ ॥ महिया अभिनवाले सच्चित्तरए अ संजमे तिविहं। दवे खित्ते काले जहियं वा जचिरं सवं ॥ ४ ॥ दुग्गाइतोसियनिवो पंचन्हं देइ इच्छियपयारं । गहिए अ देइ मुर्ख जणस्स आहारवत्थाई ॥ ५ ॥ इक्केण तोसियतरो गिमगिहे तस्स सहहिं वियरे। रत्थाईसु चउन्हं एवं पढमं तु सवत्थ ॥ ६ ॥ महिया उ गन्धमासे सच्चितरओ अ १२१० आवश्यक सनिर्यु- सूक्तिकं मूलसूत्रं न, अन्ययो-४ मुनि दीपरत्नसागर क
SR No.003941
Book TitleAagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages47
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size34 MB
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