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________________ कंचुओ समोइ। एवं पुहमपर्व जीवं कम्मं समजेइ ॥३॥ पचक्रवाण सेयं अपरिमाणेण होइ काया। जेसिं तु परीमाण तंदुई आससा होइ ॥४॥ छवाससयाई नयुसराई तइया सिविं गयस्स वीरस्स। तो बोडियाण विट्ठी रहवीरपरे समुप्पण्णा ॥ ५॥ रहवीरपुरै नयरं दीवगमुजाणमजकण्हे य। सिवभास्वहिम्मि य पुच्छा थेराण कहणा य॥६॥ ऊहाए पण्णतं बोडियसिवभहउत्तराहिं जमा मिच्छादसणमिणमो रहवीरपुरे समुप्पण्णं ॥७॥बोडियसिवभईओबोडियलिंगस्स होइ उपपत्ती।कोडिण्णकोहवीरा परंपराफासमुप्पणा॥१८॥भाष्यं । एवं एए कहिया ओसप्पिणीए उ निण्हया सत्त। वीरवरस्स परयणे सेसाणं पवयणे णस्थि॥७८४ामोत्तूणमेसिमिकं सेसाणं जावजीविया दिट्ठी। एकेकस्स य एत्तो दो दो दोसा मुणेयवा ॥५॥ सत्तेया दिट्ठीओ जाइजरामरणगम्भवसहीणं। मूलं संसारस्स उ भवंति निग्गंथरूवेणं ॥६॥ पवयणनीहूयाणं जं तेसिं कारियं जहिं जत्थ। भज परिहरणाए मूले तह उत्तरगुणे य ॥७॥ मिच्छादिट्ठीआणं जं तेसिं कारियं जहिं जत्थ। सपि तयं सुर्द मूले तह उत्तरगुणे य ॥८॥ तवसंजमो अणुमओ निग्गंध पवयणं च ववहारो। सदुजुसुयाणं पुण निशाणं संजमी चेत्र ॥९॥ आया खलु सामइयं पच्चक्खायंतओ हवइ आया। तं खलु पच्चक्खार्ण आवाए सबदवाणं ॥७९०॥ सावजजोगविरओ, तिगुत्तो छ संजओ। उवउत्तो जयमाणो, आया सामाइयं होइ॥१४९॥ भाष्यं। पढमम्मि सजीवा विइए चरिमेय सवदवाई। सेसा महव्वया खलु तदेकदेसेण दव्वाणं ॥१॥ जीवो गुणपडिवन्नो णयस्स दव्वट्ठियस्स सामइय। सो चेव पजवणयट्ठियस्स जीवस्स एस गुणो॥२॥ उप्पजति वयंति अ परिणम्मति अगुणा ण दवाई। दवप्पभवा य गुणा ण गुणप्पभवाई दवाई ॥३॥ जं जं जे जे भावे परिणमइ पओगवीससा दई । तं तह जाणेइ जिणो अपजवे जाणणा णत्यि ॥४.५॥ सामाइयं च विविहं सम्मत्त सुयं तहा चरित्तं च । दुविहं चेव चरितं अगारमणगारियं चेव ॥ ६ ॥ अजायणपि य तिविहं मुत्ते अत्ये य तदुभए चेव । सेसेसुवि अजायणेसु होइ एसेव निजुत्ती ॥१५०॥ भाष्यं । जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे। तस्स सामाइयं होइइइ केवलिभासियं ॥ ७॥ जो समो सबभूएम, तसेसु थावरेसु । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥ ८॥सावजजोगप्परिवजणट्ठा, सामाइयं केवलियं पसत्य। गिहत्यधम्मा परमंति णचा, कुज्जा बुहो आयहियं परत्थं ॥९॥ सर्वति भाणिऊणं विरई खलु जस्स सधिया णत्थि। सो सञ्चविरइवाई चुकद देसं च सर्व च ॥८००॥ सामाइयमि उ कए समणो इव सावओ हवइ जम्हा। एएण कारणेणं पहुसो सामाइयं कुजा ॥१॥ जीवो पमायपहुलो बहुसोवि अ बहुविहेसु अत्थेसुं। एएण कारणेणं पहुसो सामाइयं कुज्जा ॥२॥ जो णवि वहद रागे णवि दोसे दोण्ह मज्झयारंमि । सो होइ उ मज्झत्थो सेसा सवे अमजमत्था ॥३॥ खित्तदिसाकालगइभवियसपिणऊसासदिट्ठिमाहारे। पज्जत्तसुत्तजम्मठितिवेयसण्णाकसायाऊ ॥४॥णाणे जोगुवओगे सरीरसंठाणसंघयणमाणे। लेसा परिणामे वेयणा समुग्धायकम्मे अ॥५॥ णिचिट्ठणमुघडे आसवकरणे तहा अलंकारे। सयणासणठाणत्थे चकम्मंते अकिं कहियं ? ॥ ६॥ सम्मसुआणं लंभो उड्ढं च अहे अतिरिअलोए अ। विरई मणुस्सलोए विरयाविरई अ तिरिएK ॥७॥ पुवपडिवनगा पुण तीसुवि लोएसु निअमओ तिण्हं । चरणस्स दोसु निअमा भयणिज्जा उड्ढलोगंमि ॥८॥ नाम ठवणा दबिए खेत्त दिसा तावखेत्त पनवए । सत्तमिया भावदिसा परूवणा तस्स कायब्वा (सा होयट्ठारसविहा उ)॥ ९ ॥ पुब्वाईआसु महादिसासु पडि. बजमाणओ होइ। पुवपडिवाओ पुण अन्नयरीए दिसाए उ ॥८१०॥ सम्मत्तस्स सुयस्स य पडिवत्ती छबिहमि कालंमि। विरई विरयाविरई पडिवनइ दोसु तिसु वाचि ॥१॥ चउमुवि गतीमु णियमा सम्मत्तमयस्स होइ पडिवत्ती। मणुएसु होइ विरती विरयाविरईय तिरिएK ॥२॥ भवसिद्धिओ उ जीवो पडिवजइ सो चउण्हमण्णयरं । पडिसेहो पुण अस्सअणि मीसए सण्णि पडिबजे ॥३॥ ऊसासगणीसासगमीसग पडिसेह दुविह पडिवण्णो। दिट्ठीइ दो णया खलु ववहारो निच्छओ चेव ॥४॥आहारओ उ जीवो पडिवजह सो चउण्हम ब्णयर । एमेव य पजत्तो सम्मत्तसुए सिया इयरो॥५॥णिदाएं भावोऽपि य जागरमाणो चउण्हमण्णयरं। अंडयपोयजराउय तिग तिग चउरो भवे कमसो ॥६॥ उक्कोसयद्वितीए पडिवजंते य णस्थि पडिवण्णो। अजहण्णमणुकोसे पडिवजते य पडिवण्णे ॥ ७॥ चउरोऽवि तिविहवेदे चउसुवि सण्णासु होइ पडिवत्ती। हेटा जहा कसाएसु वण्णिायं तह य इहयपि ॥८॥ संखिजाऊ चउरो भयणा सम्मसुयऽसखवासाणं। ओहेण विभागेण य नाणी पडिवजई चउरो ॥९॥ चउरोऽवि तिविहजोगे उवओगदुगंमि चउर पडिबजे। ओरालिए चाउक सम्मसुय विउव्विए भयणा ॥८२०॥ सबेसुवि संठाणेसु लहइ एमेव सत्रसंघयणे। उक्कोसजहणं वजिऊण माणं लहे मणुओ ॥ १॥ सम्मत्तसुर्य सञ्चासु लहइ सुद्धासु तिसु य चारित्र्त। पुष्पडिवण्णगो पुण अण्णयरीए उ लेसाए ॥२॥बईते परिणामे पडिवजइ सो चउण्हमण्णयर। एमेवऽवद्वियंमिचि हायति न किंचि पडिवजे ॥३॥ दुविहाएँ वेयणाए पढिवजइ सो चउण्हमण्णयर। असमोहओऽवि एमेव पुत्रपडिवणए भयणा ॥४॥ दोण य भावेण य निविड्दतो चउण्हमण्णयर। नरएसु अणुबडे दुर्ग चउर्फ सिया उ उबहे ॥५॥ तिरिएसु अणबहे तिगं चउर्फ सिया उ उनहे। मणएम अणुब चउरो ति दुर्ग तु उबहे ॥६॥ देवेसु अणुबडे दुर्ग चउकं सिया उ उपहे। उपहमाणओ पुण सोऽपि न किंचि पडिवजे ॥७॥ ११९४ आवश्यक सनिर्यु- सूक्तिकं मूलसूत्र, rglari मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003941
Book TitleAagam Manjusha 40 Mulsuttam Mool 01 Aavassay Nijjuttisah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages47
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size34 MB
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