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मायरइ ॥३॥ देसं खित्तं तु जाणित्ता, वत्थं पत्तं उवस्सयं। संगहे साहुवग्गं च, सुत्तत्थं च निहालई ॥४॥ संगहोवग्गहं विहिणा, न करेइ य जो गणी। समणं समणिं तु दिक्खित्ता, सामायारिं न गा(प० निगू)हए ॥५॥ बालार्ण जो उ सीसाणं, जीहाए उवलिंपए। न सम्मं मम्गं गाहेइ. सो सूरी जाण वेरिओ॥६॥ जीहाएवि लिहतो न भद्दओ सारणा जहिं नथि। डंडेणवि ताडतो स भद्दओ सारणा जत्थ ॥७॥ सीसोऽपि वेरिओ सो उ. जो गुरु नवि बोहए। पमायमहरापत्य, सामायारीविराहयं ॥८॥तुम्हारिसावि मुणिवर ! पमायवसगा हवंति जह पुरिसा।तो को अन्ना अम्हं आलवण हुज संसार?॥९॥ नाणमिदसणम्मि यचरणाम यतिसुबि समयसारसु। चाएइजो ठवउ गणमप्पाण च सा य गणी ॥ च सिखं उम्गमउप्पायणेसणासुदं। चारित्तरक्खणट्टा सोहिंतो होइ सचरिती॥१॥अपरिस्सावी सम्म समपासी चेव होइ कनेसु । सो रक्खइ चक्खुपिक सवालखुइटा उलं गच्छं॥२॥2 सीयावेइ विहारं सुहसीलगुणेहिं जो अबुद्धीओ। सो नवरि लिंगधारी संजमजोए(प्र० सारे)ण निस्सारो ॥३॥ कुलगामनगररज्जं पयहिअ जो तेसु कुणइ अममनं । सो नवरि लिंगधारी संजमजोएण निस्सारो ॥४॥ विहिणा जो उ चोएइ, सुत्तं अत्थं च गाहए। सो धण्णो सो य पुष्णो य, स बंधू मुक्खदायगो ॥५॥ स एव भवसत्तार्ण, चक्खुए वियाहिए। दंसेइ जो जिणुहिद, अणुट्ठाणं जहहि॥६॥ तित्थयरसमो सूरी सम्मं जो जिणमयं पयासेइ। आणं अइकमंतो सो कापुरिसो न सप्पुरिसो॥७॥ भट्ठायारो सूरी भट्ठायाराणुवेक्खओ सूरी। उम्मग्गठिओ सूरी तिन्निवि मगं पणासंति ॥८॥ उम्मग्गठिए सम्मम्गनासए जो अ सेवए सूरी। निअमेणं सो गोयम ! अप्पं पाडेइ संसारे ॥५॥ उम्मग्गठिओ इकोऽवि नासए भवसत्तसंघाए। तमग्गमणुसरंते जह कुतारु नरो होइ ॥३०॥ उम्मग्गमग्गसंपडियाण सूरीण गोयमा! गुणं । संसारो य अणंतो होइ य सम्मग्गनासीणं ॥१॥ सुद्धं सुसाहुमग्गं कहमाणो ठबइ तइयपक्वंमि। अप्पाणं इयरो पुण गिहत्यधम्माओ चुकेति ॥२॥जइदिन सकं काउं सम्मं जिणभासिय अण्डाणं । तो सम्म भासिजा जह मणियं खीणरागेहिं ॥३॥ ओसमो. ऽपि विहारे कम्मं सोहेइ सुलभवोही य। चरणकरणं विसुद्ध उवहिंतो परवितो ॥४॥ सम्मम्गमम्गसंपट्टियाण साहूण कुणइ पच्छाई। ओसहभेसजेहि य सयमन्नणं तु कारेह ॥५॥ भए अस्थि भविस्संति केई तेलकनमियकमज़यला। जेसिं परहियकरणेकच(प्रकल)लखाण बोलिहिइ (कालो)॥६॥तीआणागयकाले केई होहिंति गोयमा! सूरी। जेसि नामग्गहणेचि हुज नियमेण पच्छित्तं ॥ ७॥ जओ-सयरीभवंति अणविक्खयाइ जह भिववाहणा लोए। पडिपुच्छसोहिनोयण तम्हा उगुरू सया भयइ ॥८॥ जो उप्पमायदोसेणं, आलस्सेणं तहेव य। सीसवगं न चोएइ, तेण आणा विराहिया ॥९॥ संखेवेण मए सोम्म !, वणियं गुरुलक्खणं । गच्छस्स लपवणं धीर!, संखेवेणं निसामय ॥४०॥ गीयत्थे जे सुसंविग्गे, अणालस्सी दढवए। अक्खलियचरिते सययं, रागहोसविवजए॥१॥ निढवियट्टमयट्ठाणे, सुसियकसाए जिइंदिए। विहरिजा तेण सदि तु, छउमत्थेणवि केवली ॥२॥ जे अणहि. यपरमत्था, गोयमा ! संजया भये। तम्हा ते उ विवजिजा, दोग्गईपंथदायगे ॥३॥ गीयत्वस्स उ बयणेणं, विसं हालाहलं पिये। निश्विकप्पो य भक्खिजा, तक्षणं जं समुहवे ॥४॥ परमस्थओ विसं णोतं, अमेयरसायणं खुनं। निविग्धं जं न तं मारे, मओवि अमयस्समो ॥५॥ अगीयस्थस्स वयणेणं, अमयपि न घुटए। जेण नो तं भवे अमयं, जं अगीयस्थदे. सियं ॥६॥ परमत्थओनतं अमयं, विसं हालाहल सुतं । न तेण अजरामरोहुजा, तरखणा निहणं वए॥७॥ अगीयस्थकुसीलेह, संगतिविहेण बोसिर। मुक्खमम्गसिमे विग्धं, पहमी तेणगे जहा ॥८॥पजलिय व्यवहं दह्र, निस्संकोनस्थ पवेसिडं। अत्ताणं निहहिजाहि, नो कुसीलस्स अछिए॥९॥ पजलंति जत्थ धगधगधगस्स गुरुणावि चोइए सीसा । राग सेण वियणुसएण तं गोयम ! न गच्छं ।। ५० ॥ गच्छो महाणुभावो तत्थ वसंताण निजरा विउला । सारणवारणपोअणमाईहिं न दोसपडिवत्ती ॥१॥ गुरुणो छंदणुवित्ती सुविणीए जियपरीसहे धीरे। णविथडे णवि लदे णवि गारविए न विगहसीले ॥२॥ खते दंते गुने मुत्ते वेरग्गमम्गमल्लीणे । दसविहसामायारीआवस्सगसंजमुजुत्ते ॥३॥ खरफरुसककसाएs. णिवाइ निरगिराए। निभच्छणनिदाढणमाईहि न जे पउस्संति ॥४॥ जे य न अकित्तिजणए नाजसजणए नऽकजकारी अ।न पवयणउड्डाहकरे कंठग्गयपाणसेसेऽचि ॥५॥ गुरुणा कजमकजे खरककसदुद्दनिठुरगिराए । भणिए तहनि सीसा भणति तं गोयमा ! गच्छं॥६॥ दूज्झिअ पत्ताइसु ममत्तए निष्पिहे सरीरेऽवि। जायमजायाहारे बायालीसेसणाकुसले ॥ ७॥ नपि न रूबरसन्थं न य वष्णन्धं न चेव दपत्थं । संजमभरवहणथं अक्खोवंगव वहणत्थं ॥८॥यण व्यायचे ईरियट्ठाए य संजमवाए। तह पाणवत्तियाए छदं पुण धम्मचिंताए ॥९॥ जत्थ य जिद्रुकणिटो जाणिजइ जिविणयबहुमाणो। दिवसेणवि जो जिट्ठो न हीलिजइ स गोयमा ! गच्छो ॥६० ॥ जत्थ य अजाकप्पं पाणचाएवि घोरदुभि. क्खे । न य परिभुजइ सहसा गोयम : गच्छं नयं भणियं ॥१॥ जन्य य अजाहि सम थेरावि न उल्लविंति गयदसणा । न य झायंती थीणं, अंगोवंगाई तं गच्छं ॥२॥ वज्जेह अप्पमत्ता अजासंसम्गि अम्गिविससरिसी। अजाणुचरो साहू लहइ अकिनि सु अचिरेण ॥३॥ थेरस्स तवस्सियस्स व बहुस्सुयस्स व पमाणभूअस्स । अज्जासंसग्गीए जणजपणय हविजाहि ॥४॥ ९२६ गच्छाचारप्रकीर्णकं आहा-१४-67
मुनि दीपरत्नसागर