SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत १९९८, ई. स. 1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागररिजी म.सा. ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स. 2012, विक्रम संवत २०६८, वीर संवत -२५३८ में वो ही आगम- मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा " नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। मूल आगम- मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * * है। [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४० ) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ निर्युक्ति भी सामिल की गई है| [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम - ३८ ) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है | [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया [४] “ओघनिर्युक्ति”-(आगम-४१ ) के वैकल्पिक आगम “पिंडनिर्युक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है| Online-आगममंजूषा : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp. DholeshwarMandir, POST :- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com मुनि दीपरत्नसागर -मुनि दीपरत्नसागर Date:-12/11/2012
SR No.003901
Book TitleAagam Manjusha 01 Angsuttam Mool 01 Aayaro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages38
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy