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________________ होना या केवल बहिर्मुखी होना व्यक्ति का सार्वभौम विकास नहीं है। व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के लिए जहाँ क्रियाशीलता, व्यावहारिकता, सामाजिकता एवं लोकप्रियता आवश्यक है, वहीं कर्तव्यों का पालन करते हुए सैद्धान्तिक जीवन की ओर उन्मुख रहना भी अपरिहार्य है। __ व्यक्ति को जहाँ अनावश्यक हिंसा, झूठ और संग्रह से बचना चाहिए, वहीं परोपकार, करुणा और सेवा के लिए भी प्रयत्नशील रहना चाहिए। एक अच्छा वक्ता होना एक अच्छी बात है, परन्तु अपने वक्तव्य के विरुद्ध आचरण करना व्यक्ति की गलत मनोदशा है। एक स्पष्टवादी व्यक्ति के लिए यह गौरतलब है कि वह ऐसा कोई संभाषण न करे, जो अप्रिय या अहितकर हो। एक स्पष्टभाषी होने के बजाय विवेकभाषी होना बेहतर है। अधिकारप्रिय होना गलत नहीं है किन्तु दूसरों के अधिकारों का हनन करना गलत है। संकोच करने की बजाय संयम बरतना अच्छा है। चूंकि व्यक्तित्व का निर्माण कई तत्त्वों के मिलने से होता है इसलिए यह जरूरी है कि उन सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जाए जो व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति को अपने जीवन में शारीरिकता, क्रियात्मकता, मानसिकता, संवेगात्मकता, सामाजिकता, नैतिकता और धार्मिकता का समुचित विकास करना चाहिए।शरीर-सौष्ठव, कर्मठता, अनुद्विग्नता, मन की निर्मलता, पारस्परिक आत्मीयता, सच्चरित्रता, व्यवहार-कुशलता आदि के प्रति व्यक्ति को निरन्तर सचेष्ट एवं सक्रिय रहना चाहिए। बाल्य जीवन में एक बात विशेष ध्यान रखनी चाहिए कि बालक भग्नाशा या हीनता की भावना से ग्रसित न होने पाए। हीनता की भावना से ही बच्चों में लज्जा, चिन्ता, भय, बेचैनी, आक्रामकता आदि प्रवृत्तियाँ घर कर लेती हैं। ___माता-पिता के बीच आदर्श सन्तुलन होना भी आवश्यक है। बच्चों के व्यक्तित्व पर माता-पिता के व्यवहार का विशेष प्रभाव पड़ता है। बच्चे केयोग्य व्यक्तित्व के लिए माता-पिता के जीवन के आदर्शवलक्ष्य प्रतिकूल नहीं होना चाहिए। बच्चों को उस पड़ौस, मित्र या वातावरण से दूर रखना --- -------- कैसे करें व्यक्तित्व-विकास - - ८८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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