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________________ पुनरावृत्ति नहीं करना चाहता जिसके कारण उसे पहले गन्दा या शरारती बच्चा कहा गया हो । यद्यपि अपनी शरारत पर बच्चा दुःख तो प्रकट कर देता है, पर उसके लिए पश्चात्ताप नहीं होता। उसका झूठ बोलने का कोई इरादा नहीं होता । वह ईमानदारी और बेईमानी के फर्क को भी नहीं समझता । यह इस उम्र की अनोखी देन है। बाल्यावस्था के उत्तरार्द्ध में बच्चे का चारित्रिक विकास अपनी गति पकड़ लेता है । आठ-नौ वर्ष के बच्चे को यह भली-भाँति समझ आ जाती है कि उसे क्या करना चाहिए और किससे परहेज रखना चाहिए? गलती या शरारत हो जाने पर वह चाहता है कि उसे उस शरारत के लिए माफ कर दिया जाए। दण्ड उसे कतई अच्छा नहीं लगता। उसके मन में यह इच्छा तो प्रबल रहती है कि उसके कार्यों की सराहना की जाए हालांकि वह समझने लगता है कि किसी को पीड़ा देना, झूठ बोलना, चोरी करना, धोखा देना या तोड़-फोड़ करना ठीक नहीं है, फिर भी नादानीवश वह यह सब कर बैठता है। दस वर्ष के बच्चे में क्षोभ और पश्चात्ताप दोनों का विकास हो जाता है । अच्छे-बुरे का ज्ञान होने के बावजूद बाल्यावस्था में सदाचार-संहिता का पूरा विकास नहीं हो पाता है। किशोरावस्था जीवन की वह कड़ी है जो चारित्रिक गुणों को एक प्रबल आधार देती है। यही तो वह उम्र है जिसमें आत्म-सम्मान का स्थायी भाव विकसित हो जाता है। इसी से प्रेरित होकर वह ऐसे कामों से परहेज रखता है जो उसके निर्धारित लक्ष्य के विपरीत हों। वह नैतिक आदर्शों को तर्क की कसौटी पर कसने में सक्षम होता है । इस अवस्था में बच्चे में राष्ट्र-प्रेम, परोपकार, सहानुभूति और अनुशासन जैसे चारित्रिक गुणों के संस्कार दिये जाएँ तो व्यक्तित्व विकास और सामाजिक व्यवहारों में बड़े महत्त्वपूर्ण परिवर्तन घटित हो सकते हैं। ऐसे संस्कारों के दूरगामी सुखद परिणाम होते हैं । व्यक्ति या बच्चे में सामाजिक आदर्शों, नियमों एवं मान्यताओं के विरुद्ध ऐसा कुछ भी विकसित नहीं होना चाहिए जो उसे मानवीय मूल्यों से ७६ कैसे करें व्यक्तित्व - विकास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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