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चरित्र-निर्माण : श्रेष्ठ व्यक्तित्व की पूंजी
चाहे कोई बालक हो या वयस्क अथवा बुजुर्ग, उसका चरित्र ही उसके व्यक्तित्व का आधार और सामाजिक सम्मान का कारण बनता है। सफलता-असफलता का द्योतक चरित्रही है। यदि वह सफल है तो जीवन सफल है। यदि वह विफल है तो जीवन असफल है। बिना चरित्र का इंसान बिना छत का मकान है। जहाँ व्यक्तित्व के निर्माण में व्यक्ति की चरित्रशीलता सबसे महत्त्वपूर्ण है, वहीं इसकी इच्छा-शक्ति और स्थायी भावों के सम्पादन में भी उसकी अहम् भूमिका है।
एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए जीवन में मानवोचित गुणों का साक्षात्कार अनिवार्य है। मानवीय गुणों की चर्चा होते ही सहजतया उसका सम्बन्ध चारित्रिक विकास के साथ जुड़ जाता है। व्यक्तित्व के कारण व्यक्ति की पूजा होती है और व्यक्तित्व का निर्माण मानवीय तथा चारित्रिक गुणों के कारण होता है। व्यक्तित्व चाहे पारिवारिक हो या सामाजिक, बगैर चरित्रशीलता के उसकी न तो विश्वसनीयता रहती है और न ही प्रतिष्ठा।
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