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________________ उचित नहीं है। अच्छा तो यह है कि मनुष्य को अपनी यह प्रवृत्ति साहित्य, संगीत, कला और समाज-सेवा की ओर मोड़ देनी चाहिए। इन जन्मजात प्रेरक-वृत्तियों के अतिरिक्त कुछ अर्जित प्रेरक वृत्तियाँ भी होती हैं जिनके कारण व्यक्ति में इच्छा, अभिरुचि एवं लक्ष्य का विकास होता है। अर्जित प्रवृत्तियों में कुछ व्यक्तिगत होती हैं तो कुछ समाजजन्य । व्यक्तिगत प्रेरक वृत्तियाँ हर व्यक्ति की अलग-अलग होती हैं । यद्धपि वृत्ति का मूल तो लगभग सबमें एक जैसा होता है, परन्तु उसके स्तर में फर्क आ जाता है। निश्चित तौर पर हर व्यक्ति अपनी आकांक्षाओं से अभिभूत होता है किन्तु कुछ लोग बड़े महत्त्वाकांक्षी हुआ करते हैं। आकांक्षा के स्तर में फर्क होने के कारण ही एक व्यक्ति तो दो-चार हजार रुपये की नौकरी में संतुष्ट हो जाता है, वहीं अन्य व्यक्ति अपनी आकांक्षा की तृप्ति के लिए लाखों-करोड़ों का व्यवसाय करना चाहता है । कोई लड़का बी. ए. पास करना चाहता है तो कोई शिक्षा की आखिरी ऊँचाई को छुए बगैर परितृप्त नहीं होता । यह भेद वास्तव में आकांक्षा के स्तर में होने वाले भेद के कारण है । प्रत्येक व्यक्ति का जीवन-लक्ष्य भी भिन्न होता है। मनुष्य की आत्मा उसे जैसा बनने की प्रेरणा देगी, उसका लक्ष्य वैसा ही घटित होता चला जाएगा। कोई तो वकील बनना चाहता है तो कोई डॉक्टर। किसी का लक्ष्य ऑफिसर बनने का होता है तो किसी का व्यापारी बनने का । जीवन-लक्ष्य के इन विविध रूपों के अलावा कुछ और भेद भी नजर आते हैं। डॉक्टर बनना एक लक्षण हुआ, किन्तु कुछ लोग इसलिए डॉक्टर बनना चाहते हैं कि वे इसे जनसेवा का उपक्रम मानते हैं। कुछ का उद्देश्य यह होता है कि डॉक्टर बनकर वे खूब पैसा कमाएँगे। कुछ लोग इसलिए भी डॉक्टर बनते हैं ताकि वे अपना और अपने परिवार का स्वास्थ्य दुरुस्त रख सकें। यह भी संभव है कि कोई बालक इन सभी तथ्यों से प्रेरित होकर डॉक्टर बनने के बच्चों को दीजिए बेहतरीन प्रेरणा Jain Education International For Personal & Private Use Only ६९ www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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