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________________ या रेत के घरौंदे बनाना, मित्र- मण्डली बनाना आदि प्रवृत्तियाँ बालक के नैसर्गिक व्यक्तित्व की अभिव्यंजनाएँ हैं । किशोर हो जाने पर बच्चा हर तरह की प्रवृत्ति करने लग जाता है। वात्सल्य की प्रवृत्तियाँ तो चालू रहती ही हैं, स्वतंत्रता की आकांक्षा और काम-संलिप्त मानसिकता जैसी प्रवृत्तियाँ भी उसमें अनायास विकसित जाती हैं। मनुष्य की ये सारी प्रवृत्तियाँ उसका जन्मजात और प्राकृतिक व्यवहार है। जन्म के समय में ही ये सारी प्रवृत्तियाँ बच्चे में उपस्थित रहती हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, उसकी वे प्रवृत्तियाँ उम्र के मुताबिक अपने आप प्रकट होने लगती हैं। मनुष्य की जन्मजात शक्तियाँ ही उसकी मूल प्रवृत्तियाँ हैं । वह बालक के रूप में जैसे ही इस विराट् विश्व में अवतीर्ण होता है, कुछ-न-कुछ व्यवहार करना प्रारम्भ कर देता है। बड़े होने के साथ ही उसके व्यवहार के दायरे भी बढ़ते चले जाते हैं। उसके समस्त व्यवहारों को संचालित करने का काम उसकी जन्मजात शक्तियों और मूल प्रवृत्तियों के जरिए होता है। बच्चे की प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के तीन पहलू होते हैं जिनकी अनुभूति और अभिव्यक्ति ज्ञानात्मक, संवेगात्मक और क्रियात्मक रूप में होती है। ज्ञानात्मक पहलू के मुताबिक व्यक्ति सबसे पहले वस्तु- विशेष, ज्ञेयपदार्थ या उत्तेजक से प्रभावित होता है। ज्ञानात्मक पहलू के बाद किसी संवेग का अनुभव करना उसका संवेगात्मक पहलू है । क्रिया अथवा प्रतिक्रिया तो ज्ञानात्मक और संवेगात्मक पहलू का ही परिणाम है। मनुष्य की मूल प्रवृत्तियाँ ही उसके समस्त व्यवहारों को संचालित करती हैं। हर व्यक्ति की प्रवृत्तियाँ उसकी मौलिकता है । संसार में मानवीय स्वभाव में रही हुई विभिन्नताएँ वास्तव में इन जन्मजात प्रवृत्तियों की विविधता के कारण ही हैं। प्रवृत्ति उसकी शक्ति है जो प्रकृति प्रदत्त और जन्मजात होती है। मनुष्य की जो मूल प्रवृत्तियाँ हैं, वे समस्त प्राणियों में किसी में कम, किसी में ज्यादा आमतौर पर पायी ही जाती हैं। पर हाँ, ये प्रवृत्तियाँ अपरिवर्तनशील हों, ऐसा भी नहीं है। प्रवृत्तियाँ विकसित तो मूल प्रवृत्तियों को दीजिए बेहतर शिक्षा Jain Education International For Personal & Private Use Only ५३ www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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