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________________ वाली वीणा के तारों की तरह। हमारे यहाँ प्रेम का अर्थ देने वाले उसके कई जुड़वेशब्द हैं-स्नेह, आत्मीयता, ममता, वात्सल्य आदि। हम इन शब्दों के अर्थ और उनके स्तर में भी फर्क समझते हैं। भला हो अंग्रेजी को जिसने प्रेम की आत्मा को एक बनाये रखा और सबको 'लव' की 'केटेगरी' में उपस्थित कर दिया है। खैर, चाहे हम प्रेम कहें या स्नेह अथवा ममता, जन्म की पहली किलकारी के साथ ही इस संवेग की पौ फूट पड़ती है और सामाजिक वातावरण के द्वारा इसका अधिकाधिक उपार्जन होता है। बच्चा जब पाँच-छह महीने का होता है तब तक उसका प्रेम परिवार के उन सदस्यों के साथ होता है जो उसका विशेष ध्यान रखते हैं। बच्चा सबसे ज्यादा प्रेम तो माँ से करता है, क्योंकि माँ ही उसकी सबसे ज्यादा देखभाल करती है। इसलिए माँ बच्चे का जीवन है, उसकी मुस्कराहट है। बगैर माँ का बच्चा अनाथ है। ___ बच्चा पिता को भी चाहता है, परन्तु माँ जितना नहीं। प्रेम का क्षेत्र तो बच्चे के बड़े होने पर बड़ा होता है और छोटे रहने पर छोटा। असली विस्तार तो विद्यालय के दाखिले के बाद ही होता है। कक्षा बच्चे के लिए एक 'कम्यून' है, जहाँ उसकी एक मित्र-मण्डली बन जाती है। पहले उसका जो प्रेम माँ और परिवार के प्रति रहता था, वही मित्रों के प्रति रहने लग जाता है। बच्चा अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में तो अपने प्रेम की अभिव्यक्ति गले लगाकर करता है, परन्तु विद्यालयीय जीवन में वह अपने मित्रों से हाथ मिलाता है। उनके पास बैठकर गप्पे-सप्पे हाँकता है और अन्य क्रियाकलापों में सहभागी होता है। बाल्यावस्था तक प्रेम की अभिव्यक्ति में कोई लिंगगत भेद नहीं होता, परन्तु किशोर-अवस्था में 'विपरीत लिंग'। 'अपोजिट सेक्स' के प्रति प्रेम का रुझान हो जाता है। __ यह उम्र ऐसी है जब युवक-युवतियों में मित्रता के बीच स्वस्थ सोच अपेक्षित है। उन्हें अपनी मित्रता इतनी व्यावहारिक, किन्तु इतनी सन्तुलित बनाए रखनी चाहिए कि उन्हें किसीअशोभनीय टिप्पणी का शिकार न होना पड़े। लुक-छिपकर मिलना सन्देहास्पद स्थिति को जन्म देता है। यदि - - - - - - प्रेम की पवित्र भावना - - - - - - - - - - - - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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