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________________ प्रेम की पवित्र भावना प्रेम जीवन का वह पवित्र संवेग है जिससे मित्रता और भाईचारा जैसे विश्व-कल्याणकारी मार्ग नि:सृत होते हैं। शस्त्र, हिंसा और आतंक के भयावह वातावरण से घिरे हुए विश्व की समस्याओं को सुलझाने के लिए मनुष्य की प्रेम-भावना सर्वाधिक कारगर साबित हो सकती है। विश्वबन्धुत्व और विश्व-शान्ति की आवश्यकता की आपूर्ति प्रेम से ही सम्भावित है, बशर्ते वह प्रेम, 'विश्व-प्रेम' की रसधार से अभिसिंचित हो। संकुचित प्रेम व्यक्ति को संकुचित करता है और विश्वप्रेम हर संकुचितता के पार है। वही प्रेम विश्व-बन्धुत्व का प्रवेश-द्वार बन पाता है जो व्यक्ति, समाज या प्रदेश-विशेष से ऊपर उठकर सम्पूर्ण मानवता से अपने हाथ मिलाना चाहता है। प्रेम मनुष्य का सबसे बेहतरीन संवेग है। यदि मानसिक संवेगों में से प्रेम को सेवा-निवृत्त कर दिया जाए तो जीवन में क्रोध, चिन्ता और ईर्ष्या के सिवा बचेगा क्या? सिवा प्रेम के जीवन की कोई परिभाषा नहीं हो प्रेम की पवित्र भावना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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