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________________ 'कुछ और' की मांग ही चित्त की लम्बी यात्रा है। मनुष्य का चित्त जब यात्राशील होता है तो चलता ही चला जाता है। चलने की प्रक्रिया में उसकी यह तमन्ना होती है कि दुनिया की सब चीजें उसे मिल जाये। वह फिर छांटना शुरु करता है यह मित्र अच्छा नहीं है, वह मित्र अच्छा है। यह स्त्री अच्छी नहीं है, वह स्त्री अच्छी है। यह पुरुष अच्छा नहीं है, वह पुरुष अच्छा है। यह छंटनी व्यक्ति को समत्व से खिसकाती है और वह दुनिया भर के चित्त इकट्ठे करने लग जाता है। इसे यों समझिये । एक दिन अखबार में विज्ञापन छपा कि अमुक इलाके में एक ऐसी दुकान खोली गई है, जहां पर वधुओं की छंटनी होती है। डाकघर में चिट्ठियों की छंटनी की तरह वधुओं की छटनी होती है। वह युवक गया उस दुकान में। बाहर एक अधेड़ उम्र का आदमी बैठा था। आदमी से पूछा, क्या यह वही दुकान है जिसमें बधुओं की छंटनी होती है। आदमी ने कहा— हां, यह दुकान वास्तव में ऐसी ही है। आपको कैसी वधु चाहिए? लड़के ने कहा, मुझे सर्वोत्तम लड़की चाहिए, जिसमें कोई कमी न हो। आदमी ने कहा ठीक है, आप भीतर चले जाइये। जैसी आप चाहेंगे, वैसी वधु मिल जायेगी। युवक भीतर गया आगे उसे दो दरवाजे मिले। एक दरवाजे पर लिखा हुआ था, सुन्दर लड़की, दूसरे पर लिखा हुआ था बदसूरत लड़की। उसने वह दरवाजा खोला जिस पर लिखा हुआ था सुन्दर लड़की। मगर भीतर कोई नहीं था। कुछ और आगे बढ़ा, तो फिर उसे दो दरवाजे मिले। एक दरवाजे पर लिखा था, खाना पकाने वाली । दूसरे पर लिखा था मालकिन की तरह हुकुम चलाने वाली। वह बिल्कुल गणित के हिसाब की तरह चला। उसने फिर उसी दरवाजे को धक्का दिया जिस पर लिखा हुआ था खाना पकाने वाली। भीतर उसे लड़की की जगह फिर दो दरवाजे मिले। एक पर लिखा था दहेज साथ में लाने वाली, दूसरे पर लिखा हुआ था बिना दहेज वाली। दहेज वाली का दरवाजा खोलकर अन्दर घुसा, पर मिला कुछ नहीं। मिलता क्या खाक ? वह बेचारा असमंजस में फंस गया। वहां लड़की तो मिली नहीं, मगर एक चमकता हुआ शीशा मिल गया। शीशे के पास एक तख्ती लगी थी। उस पर लिखा हुआ था 'महोदय ! कृपया आप अपना मुखौटा शीशे में देख लें। आप जैसी लड़की चाहते हैं, क्या स्वयं वैसे हैं? संसार और समाधि Jain Education International 86 For Personal & Private Use Only - चन्द्रप्रभ www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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