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लोभ का बोध कर लें। बोध से ही लोभ मिटेगा। रहें ऐसे पुरुष की छाया में, जिसने लोभ को जड़ से ही उखाड़ फेंका है। जो बटोरता नहीं, मात्र बांटता है। उस सत्संग में ही स्वयं के लोभ का बोध होगा । निर्लोभी की किरण उतरने दें स्वयं के लोभ में। इसी से छूटेगा लोभ का अंधकार। निर्लोभ ही निर्वाण है। यही सुखद छाया है उस शाश्वत की ।
संसार और समाधि
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- चन्द्रत्रम
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