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________________ सीनियर डाक्टर को बुलाया। डाक्टर ने कहा इलाज करने से ठीक हो जाएंगे। कोई तरह की चिन्ता न करें। उसने डाक्टर से पूछा जी ! मेरे इलाज में कितना खर्चा आ जायेगा ? डाक्टर बोला, करीब तीन हजार । पास में उसका लड़का खड़ा था। उसने लड़के से पूछा अरे बेटे ! जरा हिसाब लगाकर बता तो कि अन्तिम संस्कार में कितना खर्चा आता है? लड़का बोला, पापा! कोई तीन सौ रूपया । सेठ थोड़ा झल्लाया। लड़के से कहने लगा, तू खड़ा खड़ा क्या करता है? वही कर, जिससे सत्ताईस सौ का मुनाफा हो। इसे कहते हैं मक्खीचूसों की मक्खीचुसाई । लोगों की मक्खीचुसाई भी इतनी विचित्र होती है कि उसे देख सुनकर अचम्भा होता है। जब पत्नी की हालत सीरियस होती है, और डाक्टर कहता है कि इसके उपचार में पन्द्रह सौ का खर्चा आयेगा तो पति तपाक से बोल पड़ता है, इसे जाने दे, पांच सौ में तो नई आ जायेगी। पता नहीं, लोगों की यह कुत्सित और कुण्ठित तृष्णा कब सम्बोधि पाएगी। जब तक व्यक्ति का ध्येय एक मात्र धन का संचय करना रहेगा, हकीकत में वह तब तक निर्धन ही बना रहेगा। धन उसकी नौकरी नहीं करेगा, वरन वह धन का नौकर होगा। वह मकान मालिक नहीं होगा, अपितु मकान उसका मालिक होगा। कंजूसों की आत्मकथाएं पढ़ता हूं तो लगता है कि लोभ उनके अन्तरंग में सर्प की तरह कुंडली मारकर बैठ जाता है । अहंकार के राकेट पर बैठकर वे उड़ानें भरते हैं। माया उनकी प्रदर्शनी बन जाती है। अब रहा क्रोध, उसे तो इन तीनों में कहीं भी खोजा जा सकता है। लोभ इस चण्डाल-चौकड़ी का ही एक अंग है। लोभ जहां-जहां जाएगा, शेष तीनों भी वहां संग-संग जायेंगे। माया तो वैसे लोभ की शिष्या ही है। लोग ही मायावी होते हैं। दूसरे लोक से मायावी चीजें नहीं आतीं। माया मनुष्य की मानसिक विकृति है। लोभ माया से पहले आता है। जहां दोनों हैं, वहां खुद ही मुख्य होता है। स्वार्थ में झुलस पड़ती हैं उसकी आंखें। मायावी लोभ सवार हो गया तो मानवता को कुंठित होना ही पड़ता है। दुर्योधन जैसे मदमाता लोभी और शकुनि जैसा कपटी जहां दोनों एक साथ हो जायें, तो फिर लाक्षागृह में आग लगे, तो कौन-सा आश्चर्य है । षड्यन्त्र माया की ही अभिव्यक्ति है। लोभी कपटी के आंखें कहां! खोपड़ी तो है, पर समय कहां! सोच तो है, पर विवेक कहाँ! पांडित्य तो है, पर प्रज्ञा कहां ! संसार और समाधि Jain Education International 72 For Personal & Private Use Only - चन्द्रप्रम www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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