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________________ तक किसी ने आकाश का किनारा पाया है? पा भी नहीं सकते। क्योंकि आकाश सत्य नहीं, मात्र अस्तित्व का भ्रम है। आकाश खालीपन का नाम है। अवकाश का पर्याय है। ____ चाह और लोभ में प्रवेश आकाश में प्रवेश जैसा है। चाह की पूर्ति के लिए प्रयत्न करना आसमान में थेगले लगाना है। यों करके हाथ में थामी तलवार को आप आसमान में चला रहे हैं। अपनी ही परछाई को आप काटने मारने की चेष्टा कर रहे हैं। सावचेत हो सकें तो अच्छा है। परछाई को काटने के चक्कर में कहीं अपने हाथ-पैर मत काट बैठना। ____ मान भी लें, यदि कोई चाह पूरी हो गयी, तो उसका पटाक्षेप कहां हुआ! चाह-पूर्ति ही लोभ को प्रोत्साहन है। लोभ बिचौलिया है, दलाल है एक चाह को जन्माने में भी, उसे आपूर्त करने में भी। इसलिए केवल चाह ही असीम और अनन्त नहीं है, वरन् लोभ भी असीम अनन्त है। पैसे के पीछे केवल गरीब ही नहीं दौड़ता, करोड़पति भी दौड़ता है। गरीब जितना दौड़ता है, अमीर उससे भी ज्यादा दौड़ता है। समय का गरीब के पास अभाव है, तो अमीर के पास भी है। सब कोल्हू के बैल की जिंदगी जी रहे हैं। सब चलते जा रहे हैं। यात्रा जिंदगी भर होती है। पहुंच कहीं भी नहीं पाते। चलने में भी इतना मचलना है कि जिंदगी केवल चलचलाव का रास्ता ही सिद्ध होती लगती है। आखिर चलते-चलते दुनिया से ही चले जाओगे, पीछे रहेंगे सिर्फ लूटे कमाये ठीकरे। आपके दादा ने खूब धन कमाया/बटोरा। खुद ने भोगा नहीं। सब पीछे छोड़ गये। पिता ने सबक न पाया। उसने भी धन कमाने में जीवन को दांव पर लगाया। सोना अभी तो कमा लूं बाद में काम आयेगा। भोगने का समय आये, उससे पहले मरघट का न्यौता आ जाता है। यों जिंदगी अतीत के खण्डहर और भविष्य की कल्पनाओं में ही बिदकी रह जाती है। कैसा आश्चर्य है कि अवतार, तीर्थकर, बद्ध, पैगम्बर होने के बावजूद भी मनुष्य आज तक भटक रहा है। खुद को भूला-खोया मनुष्य दुनिया को खोजने/पाने की लालसा वाला भटकेगा नहीं तो और क्या होगा? भटकाव और कछ नहीं. मन का ही हवाई महल है। मन के सरोवर में उठी एक लहर कई लहरों को अस्तित्व दे बैठती है। आप तालाब में एक छोटा-सा पत्थर फेंककर देखें। लहरें उठेगी और पूरे तालाब को तरंगित कर देंगी। मनुष्य की भी यही दशा है। ___ प्रतियोगिता प्रतिस्पर्धा में भी तो यही होता है कि हर धावक दूसरे धावक को पीछे छोड़ता चला जाता है। आगे-से-आगे बढ़ते जाना उसका कार्य है। एक चाह पैदा हुई। संसार और समाधि -चन्द्रप्रभ 70 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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