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________________ एक लड़के का पिता अपने लड़के से मिलने के लिये स्कूल गया। लड़का पिटता हुआ मिला। लड़का अपने पिता को देखते ही चिल्लाया, पापा! मैडम मुझे खूब मारती है। पिता ने कहा, बेटा! मैडम तुम्हारी भलाई के लिये तुम्हें मारती है। तो लड़का बोला, पापा! तो फिर आप भी मैडम की भलाई के लिये कुछ कीजिये ना! __ भलाई के लिये! सामने वाले की तो खटिया खड़ी कर दे रहे हो, ऊपर से डींग हांकते हो भलाई की! द्वैत-संघर्ष में किसी अद्वैत का दखल करना अधिक समझदारी नहीं है। समझदारी यही है कि दो के बीच तीसरा सम्मिलित न हो। वह मध्यस्थ बना रहे। सम्मिलित होना नासमझी पत्ते की बात तो यह है कि नासमझी के किस्से ज्यादातर समझदारों के द्वारा होते हुए देखे जाते हैं। नासमझ तो नासमझी करेंगे ही, मगर समझदार भी जब नासमझी कर बैठते हैं, तो इससे बड़े आश्चर्य की बात क्या होगी। संसार के सात महान् आश्चर्य इस आश्चर्य के सामने नाटे-बौने लगेंगे। बच्चा घड़ा फोड़ दे, तो चलेगा। पर जब बड़ा आदमी घड़ा फोड दे तो चलेगा? देखा तो यह जाता है कि बच्चे के पैर से स्याही की दवात को ठोकर लग जाये, तो बड़े लोग कहते हैं, अन्धा है क्या, देखकर नहीं चल सकता? पर जब बड़े आदमी के द्वारा ठोकर लगती है तब? तब भी घट्टी में छोटा ही पिसेगा। बड़ा कहेगा, दवात किनारे नहीं रख सकते? दिन भर आलसी टटू बने पड़े रहते हो! - दूसरों को तो फटकार सकते हो, पर स्वयं को! जो व्यक्ति स्वयं की गलती को स्वयं की गलती मानता है, वह सत्य का अनुयायी है। उसने न्याय की तुला का सम्मान किया है। जो नहीं मानता, वह असत्य के बांसों की झुरमुट में रहता है। मैने एक बहिन को इतनी फटकारें सुनते पाया कि मेरा भी दिल पसीज उठा। मैं न देख सका उसकी संजीवन संवेदना। आखिर लोग क्यों बनाते हैं किसी के सच्चे जीवन को सड़नशील! सोचने लगता, ओह ! लोग किस तरीके से दूसरों की जिन्दगी में जहर घोल डालते हैं। पर क्या किया जाए! सर्प जहर ही घोलेगा। अमृत स्वभाव होता तो अमृत घोलता। यहां वरदान देने वाले लोग नहीं मिलते, अभिशाप देने वाले भरे पड़े हैं। ... जो जिन्दगी के अन्ध-अभिशप्त गलियारों में चांदनी की चन्दन-सी बौछार करता है, वही जीवन का सच्चा गुरु है, वही पिता है, वही सास-ससुर, वही अपने से बड़ा है। मगर जो लोग चन्दन से महकते और चांदनी से रोशन जीवन के बदरीवन में सर्प छोड़ने की चेष्टा संसार और समाधि 43 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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