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________________ हे प्रेम . जो ऐसा सोचेगा कि यहां सब कुछ परिवर्तनशील है, चलता चला जा रहा है, वह कभी मोहग्रस्त नहीं होगा ! संसार की अनित्यता का चिन्तन करना निर्मोह होने का पहला सोपान है। संसार में जो हमें थिरता दिखाई देती है, वह सत्य नहीं, दृष्टि-भ्रम है। हालांकि हम अस्थिरता और क्षणभंगुरता के दृश्य प्रतिपल निहारते हैं, फिर भी अपने प्रति हम सचेत नहीं हो पाते हैं। हम जानते हैं कि बड़े-बड़े वैभवशाली महल खंडहर बन गये। बड़ेबड़े पहाड़ ढह गये। जो फूल सुबह मुस्कुरा रहा था, वही सांझ को कुम्हलाया हुआ मिला। जिस पेड़ पर कल तक पत्तियां इठलाती पायीं, आज उसका कंकाल रूप नजर आया। जो लोग रात को इंसते- खिलते थे, युगों-युगों की कल्पनाओं को संजोये हुए थे, उनके लिए अगला मिनट मौत बनकर आ गया। अभी रूस में आए भूकम्प में यही तो हुआ। लाखों-लाख लोग एक मिनट में लील गए। पर क्या सचेत हुए हम अपने लिए? क्या हमने यह सोचा कभी कि ऐसा समय हमारे लिए भी संभव है? आप ऐसा सोच नहीं सकते। क्योंकि आप अपने को थिर और सुरक्षित महसूस करते हैं। क्षणभंगुरता का क्या, वह हमारे साथ हमारी छाया की तरह लगी हुई है। बुढ़ापा कोई अचानक नहीं आता है। प्रतिदिन आता है वह। पर आपको महसूस नहीं होता। आप रोजाना नहाते हैं, और कांच के सामने चले जाते हैं। आपने जैसा कल अपने को महसूस किया था, वैसा ही आज कर रहे हैं। आप अपने आपको बिल्कुल ठीक-ठाक और जवान महसूस करते हैं, अपितु बूढ़े भी करते हैं। सफेद मूंछ वाला भी जब कांच के सामने खड़ा होता है तो अपनी मूंछ पर ताव जरूर देता है। और साठ वर्ष की ढलती आयु में भी अपने को जवान महसूस करता है। आप जरा सोचिये कि जीवन में बुढ़ापा आना क्या परिवर्तन नहीं है, पर यह परिवर्तन इतने आहिस्ते-आहिस्ते होता है कि पता भी नहीं चल पाता। इसीलिए तो लोग क्षणभंगुरता को स्वीकार नहीं करते। वे तो स्वीकार करेंगे, जब उन्हें यों लगेगा कि रात को सोते समय तो जवान थे और सुबह उठे तो बूढ़े हो गये। तब उन्हें लगेगा कि अरे ! सब नश्वर है, क्षणभंगुर है। मगर परिवर्तन की यह प्रक्रिया काफी सूक्ष्म है। एक-एक बूंद रिसता है पानी, बाल्टी से। रिसते-रिसते आखिर खाली हो जाती है बाल्टी, जीवन की गगरी । हालांकि आप यह रिसाव महसूस नहीं करते, पर यदि आप हर सुबह अपने आपको गहराई से निहारेंगे, तो स्वयं में कुछ फर्क पाएंगे। पर ऐसा पाने के लिए बड़ी सतर्कता और जागरुकता की जरुरत है। बदलाव बड़ा बारीक है। जब आप गहराई में जायेंगे, तो आपको संसार और समाधि Jain Education International 23 For Personal & Private Use Only -चन्द्रप्रभ www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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