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________________ कांटा बाधक है। सुख बांटने वाले तो बहुत हुए है, पर दुःख मिटाने वाले कम। यदि दुःख मिटाने वाला दुःखवादी है, तो संसार में कोई भी सुखवादी नहीं है। ____ मैंने महावीर और बुद्ध को गहराई से समझने की चेष्टा की है। वे घावों को धोते हैं, सड़ रहे बीजों को सम्हालते है। यह काम छोटा भले ही लगे कुछ लोगों को, पर संसार में सुख की सुरभि बिखरने से पहले दुःख की दुरभि हटानी खास जरुरी है। और उसे हटाने के लिए उसके कारण को हटाना जरुरी है। जो संसार के सागर में गहराई से गोते खाता है, वह जानता है, यहां दुख के अलावा कुछ नहीं है। पैठो सागर में, किसी भी कोने से, किसी भी सीमा से, किसी भी क्षेत्र से, किसी भी समय में। उसका पानी खारा ही मिलेगा। देश बदल सकता है, समय बदल सकता है, योजनाएं बदल सकती है, भावनाएं बदल सकती है, पर संसार का स्वरूप नहीं बदलता। उसकी नश्वरता नहीं बदलती। क्या आपने कभी किसी सागर का पानी मीठा है, ऐसा सुना है? यदि सुना है, तो वह सत्य नहीं है। जरूर कहीं-न-कहीं धोखा है। और आदमी संसार में जीता ही धोखे के सहारे है, झूठ के सहारे जीता है। संसार में झूठ के बिना जीना कठिन है। इसलिए तो हमारी जिंदगी पूरी की पूरी यों ही गुजर जाती है। यात्रा तो जिंदगी भर होती है, पर बिना मंजिल की। हाथ में दिया तो हर घड़ी थामे रखा, पर बिना ज्योति का। यही कारण है कि जिंदगी भटक रही है अंधेर खलाओं में। पेड़ की डालियां तो काटी। जन्मों-जन्मों से काटी। पर पेड़ फिर भी बना रहा। कारण, जड़ें अब भी बनी हुई है। इसलिए उतरो जड़ों में, जमीन की गहराई में। बिना जड़ को काटे पेड़ को खतम करना जटिलता है। जिसने यह बात समझ ली, उसके लिए संसार का जटिलताएं सरलता और सुगमता में बदल जाएगी। सच्चाई की रोशनी हाथ में थामो। समझो, बूझो। मैंने इतना कहा, यानी कहकर हाथ में आपके दीया थमाया। आजमाइश अभी बाकी है। अब आप स्वयं खोजें इस दीये के सहारे सत्य को। स्वयं की खोज से जो सच्चा अनुभव मिलता है, वही असली है, वही शास्त्रार्थ है, वही सामर्थ्ययोग है। संसार और समाधि 14 चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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