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________________ राजा साधु से मिला। राजा लोग या बड़े-बड़े नेता लोग साधुओं से यूं ही नहीं मिलते। मिलने में जरूर कोई-न-कोई राज रहता है उन लोगों का। स्वार्थ से बढ़कर राज और क्या होगा? साधु से राजा का मिलना भी स्वार्थ-पूर्ति का एक रूप था। साधु ने राजा की बात सुनी, उसकी बेचैनी को भी पहचाना, सूत्र पाने की जिज्ञासा भी उसे चरम लगी। साधु ने राजा के हाथ में सूत्र के नाम पर अपनी भुजा पर बंधा एक ताबीज दिया। कहा, इसे पहन लो। इस ताबीज में एक कागज का टुकड़ा है, जिस पर सूत्र लिखा है। यह सूत्र मेरे परमज्ञानी गुरु ने मुझे दिया था। मैं इसे तुम्हें दे रहा हूं, पर इसे अभी खोलकर मत पढ़ना। यह सूत्र जीवन की आत्यन्तिक अनुभूति है। इसका उपयोग तभी करना जब तुम्हें लगे कि तेरी जीवन-नैया अब डूबने के करीब है। जब तुम अपने आपको गहन दुःखी महसूस करो, जब तुम वेदना की आखिरी सीढ़ी पर चलने लगो, जब तुम स्वयं को बेसहारा और अकेला पाओ, उस समय इस ताबीज के सूत्र को पढ़ना। यों ही बिना किसी कारण इस सूत्र को पढ़ना बेकार है। राजा ने साधु की बात मंजूर कर ली। राजा ताबीज को लिये महल में आया। उसकी कई बार इच्छा होती ताबीज में बंधे उस कागज के टुकड़े को पढ़ने की। मगर संत की कही बात याद आ जाने से वह ताबीज खोल नहीं पाता। वादा जो किया था। ____ पर किसी पड़ौसी राजा ने अप्रत्याशित हमला कर दिया। वह राजा हार गया। तो अपने घोड़े पर वह युद्ध के मैदान से भाग निकला और जंगल की तरफ अपना घोड़ा दौड़ाने लगा। राजा को भगाते देख दुश्मन उसका पीछा करने लगे। दौड़ते-दौड़ते सांझ पड़ गयी। अंधेरा छाने लगा। राजा अपने घोड़े को अभी भी दौड़ाये चला जा रहा है। उसे अपना पीछा करते हुए दुश्मन तो नहीं दिखाई दिये, पर घोड़ों की टापें तो सुनाई दे रही थीं। अचानक राजा ने पाया कि सामने जंगल का रास्त बंद हो गया। पीछे लौट नहीं सकता। कारण पीछे शत्रु है। आगे जा नहीं सकता। कारण सामने टेढ़ा खड़ा पत्थर है। चारों तरफ कंटीली भयंकर झाड़ियां। राजा एक पल के लिए हक्का-बक्का रह गया। सहसा उसे याद आयी ताबीज की, उस गोपनीय यन्त्र की, उस बहुमूल्यवान् सूत्र की। उसने अपने-आपको उस स्थिति में पाया, जो उसे सन्त ने कही थी। उसने ताबीज खोला, कागज पढ़ा और एक लम्बी सांस छोड़ी। उसमें लिखा था- यह भी बीत जायेगा। . राजा को लगा, सूत्र सही है। राजा न रहा, राज्य चला गया। वैभव बीत गया। जब राज्य, सुख, वैभव सब चले गये, तो यह दुःख भी, यह आपत्ति भी इस सूत्र के अनुसार बीत जानी संसार और समाधि 6 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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