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संवेग वह सुनाता है। ध्यान के समय मन का भटकाव फिसलन नहीं है, अपितु अन्तरंग में दबे-जमे विचारों का प्रतिबिम्ब है। ध्यान अगर ऊपर-ऊपर होगा, तो वह ऊपर-ऊपर के विचार जतलाएगा। जो यह कहते हैं कि ध्यान के समय हमारा मन टिकता नहीं, वे ध्यान नहीं करते, वरन् ध्यान के नाम पर औपचारिकता निभा रहे हैं। ध्यान ज्यों-ज्यों गहरा होता जाएगा, त्यों-त्यों विचार भी गहरे होते जाएंगे। वे बड़े पके हए और सधे हुए फल होंगे। समाधि के क्षणों में आने वाले विचार आत्म-ज्ञान की झंकार है। समाधिमय जीवन में उभरे विचार स्वयं की भगवत अभिव्यक्ति है।
समाधि समाधानों का केन्द्र है। समाधान तो हजारों किस्म के होते हैं, पर समाधि समाधानों-का-समाधान है। यह उत्तरों-का-उत्तर/अनुत्तर है। भला, जो जगमगाहट सूरज में है वह ग्रह-तारों में कहां से हो सकती है? उसकी उजियाली को बादल ढांक नहीं सकता। इसलिए समाधि अन्तर-व्यक्तित्व की विकास की समग्रता है। ध्यान इसमें मददगार है। अचेतन मन को राहत देना ध्यान की प्रफुल्लता है। रोजमर्रा की तनाव-भरी जिन्दगी में भी मानसिकता तथा प्रफुल्लता को अंकुरित करना ध्यान की मौलिक देन है।
ध्यान और समाधि कोई चमत्कार नहीं है। यह चित्त के साथ एकाग्रता तथा वास्तविकता की दोस्ती है। चमत्कार मायाजाल भी हो सकता है, पर समाधि बाजीगरी और मदारीगिरी नहीं हो सकती। चमत्कार हर आदमी नहीं कर सकता, पर समाधि हर आदमी पा सकता है। तन्द्रा टूटी कि समाधि की देहरी पर पांव रखा।
किसी ने मुझसे पूछा कि मंदिर में घण्ट क्यों बजाया जाता है? क्या भगवान को जगाने के लिए? ___ मैंने कहा, नहीं। मंदिर में घण्ट बजाया जाता है अपने आपको जगाने के लिए, स्वयं को तन्द्रा से उबारने के लिए। ताकि दुनिया-जहान के बिखराव और भटकाव को रोककर मंदिर में एकाग्रचित हो सके। मंदिर हमारी श्रद्धा का घर है। वह हमारे चित्त की एक उज्ज्वल भाव-दशा है। जहां चित्त शान्ति और समाधि का आलिंगन करे, वही मंदिर है। घण्टा भीतर के लिए जाग-घड़ी है। उसे सुनकर यदि खुद जग गये, तो खुदा जगा है। खद भी न जगे, तो खदा को क्या जगाओगे! वह जागृत के लिए जागृत और सुप्त के लिए सुप्त/लुप्त है।
ध्यान हमें भीतर से आठों पहर जगाए रखता है। वासना की तन्द्रा ध्यान-प्रहरी को आन्दोलित नहीं कर सकती। इन्सान जकड़ा है वासना के पंजों में। उसकी जड़ें गहराई संसार और समाधि
--चन्द्रप्रम
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