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________________ एक बार कपिल मुनि से चोरों का पाला पड़ गया। चोर आये लूटने, पर मुनि के पास लुंटवाने को क्या मिलेगा। चोरों के लिए वह रीता पात्र है। और जो चीजें मुनि के पास थीं सच्चाई और अचौर्य की, सो चोरों के कोई काम की नहीं थी। चोरों के लिए मुनि निर्धन की कुटिया है। ___ मुनि का तो काम ही दूसरों को उपदेश देना है। कपिल मुनि भी चोरों को देने लग गये उपदेश। आजकल का बाजारू उपदेश देना तो उन्हें आता नहीं था। वो तो गाने लगे अधुवे असासयम्मि, संसारम्मि दुक्ख पउराए। किं नाम होज्ज तं कम्मयं, जेणाहं दुग्गइं न गच्छेज्जा।। चोरों ने कपिल का यह संगान सुना तो वे अवाक रह गये। उन्होंने इसे बारीकी से सुना। ध्यानपूर्वक, मनोयोगपूर्वक सुना। पता नहीं, मुनि के शब्दों में क्या ताकत थी कि उनके शब्दों ने चोरों के दिल की सोयी वीणा का तार-तार झंकृत कर दिया। चोरों को लगा कि यह संगान जीवन का ध्रुव सत्य है। अब बे चोर नहीं रहे। चोर के वेश में उनके जीवन के क्षितिज में भोर हो गया था। वेश चोर का, पर अन्तस् मुनित्व के आयोजन में। चोर भी गाने लगे अधुवे असासयम्मि, संसारम्मि दुक्ख पराउए। किं नाम होज्ज तं कम्पयं, जेणाहं दुग्गइं न गच्छेज्जा।। वे भर उठे अहोभाव से। यह अधूरा गीत ही परमात्मा की महागीता को निमंत्रण था। दम गीत में नहीं होता, दम होता है, अहोभाव में, उन संस्कारों में जो किन्हीं गंवारु शब्दों से भी जग सकता है। बुद्ध को जो चीज पंडित न दे पाए उसे पनिहारिनों ने दे दिया। चोर न सुधर सकेजेलों की यंत्रणा से। वे सुधरे सत्य की जिज्ञासा से,सत्य की सम्बोधि से, दीप के सम्पर्कसे। चोरों को लगा ये दो वाक्य कोरे नहीं हैं। यह महागीता है। गीता को जन्माने के लिए केवल कृष्ण ही नहीं चाहिए, अर्जुन भी चाहिये। यह गाथा जीवन की जिज्ञासा है। अर्जुन-सी स्थिति बनी हुई है। अर्जुन युद्ध के मैदान में खड़ा है और चोर घर में। अर्जुन के सामने कृष्ण है और चोरों के सामने कपिल। कृष्ण अर्जुन को प्रभावित करते हैं और कपिल चोरों को। फर्क यही है कि अर्जुन युद्ध करने के लिए अपने कदम बढ़ा देता है, जबकि चोर अपने कदम पीछे खिसका लेते हैं चोरी के मार्ग से। संसार और समाधि --चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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