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युवक घर पहुंचते ही बीच आंगन में धड़ाम से गिर पड़ा। डॉक्टर ने उसे बेजान पाया तो उसने मृत्यु का प्रमाणपत्र परिवार वालों को थमा दिया।
परिवार वालों ने मृत्यु के बाद दिये जाने वाले दहेज की रश्म अदा की। सीढ़ी, बांस, दुसाला, सबकी आंखों से गंगा-यमुना फूट फूटकर बहने लगी। अरथी को लिये घरकी देहरी तक पहुंचे, कि फकीर पहुंच गया। फकीर को वस्तुस्थिति बतायी, और युवक को पुनर्जीवित करने के लिए लोगों ने निवेदन भी किया। ___ फकीर ने कुछ देख-परखकर कहा- जीवित तो हो सकता है, पर किसी के घर आई हुई मौत कभी खाली हाथ नहीं जाती। अगर इसके स्थान पर कोई दूसरा मरने को तैयार हो तो यह युवक जीवित हो सकता है। ___सब चौक। सत्राटा छा गया। मरने वाले के पीछे कौन मरे? आफत की घड़ी में रुपये से सहयोग किया जा सकता है, पर जीवन को दांव पर कौन लगाए? प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन किसी दूसरे के जीवन से लाख गुना ज्यादा प्यारा होता है। मनुष्य को धन से बहुत प्रेम होता है। धन से ज्यादा उसे मां-बाप से प्रेम होता है। मां-बाप से ज्यादा स्वयं के बच्चों से प्रेम होता है। बच्चों से ज्यादा पत्नी से प्रेम होता है। पर इन सबसे भी स्वयं के जीवन से सबसे ज्यादा प्यार होता है। अतः फकीर के कहने पर कौन मरे?
माता-पिता के बाल पक गये, पत्नी का रंगीन जीवन खो गया, भाई बच्चों को अपनी विवशता। मरने वाले के पीछे कौन मरे। पिता ने कहा पांच-पांच बेटें हैं, आखिर में किस किस के पीछे मरूंगा।
मां ने कहा पत्नी पतिनिष्ठ होती है। ढलती उम्र में पति की सेवा पत्नी का सर्वस्व है। भाइयों ने कहा हमारी कुंवारी साधे यूरी किये बिना संसार से विदा नहीं ली जा सकती। पत्नी ने कहा मरने वाले तो मर ही गये। मैं अपनी जिन्दगी जैसे तैसे भी खींच लूंगी। मरने वाले के पीछे मरना संभव नहीं है।
हां सैकड़ों लोग खड़े थे। फकीर ने एक एक से पूछा पर सबने पीठ दिखा दी। कोई मरने को तैयार नहीं हुआ।
जब टिकट मिला है जाने का, डेरा जो लगा है मरघट में। जलाने वाले लाखों हैं, संग जलने वाला कोई नहीं।
संसार और समाधि
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-चन्द्रप्रभ
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