SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सपने में यात्रा बाहर की होती है, भीतर की नहीं, भीतर की यात्रा की शुरूआत तो स्वप्नमक्ति से है। भीतर की यात्रा होगी, तो ही आध्यात्मिक शान्ति जीवन्त होगी। सब अध्यात्म में रमें, तो बहुत ही बढ़िया है। हर कोई अध्यात्म में रमे, यह नामुमकिन है। पर रम जाये, तो अच्छा ही होगा। सारा विश्व शान्ति में तैरने वाला हो जाए, तो इससे विश्व का कल्याण ही होगा। कल एक भाई कह रहे थे आये दिन दीक्षाएं हो रही हैं। यों तो सारा संसार दीक्षा ले लेगा तो? मैने कहा, हर आदमी संसार के कल्याण की भावना करता है और तुम यह सोचकर चिंतित हो, अगर सारे संसार का कल्याण हो गया तो! दीक्षा जीवन के कल्याण का ही एक उपक्रम है। जीवन के संस्कारों में एक अभिनव क्रान्ति हो जाना ही दीक्षा है। दीक्षा दिव्यत्व की जिज्ञासा है। अगर सारा संसार दिव्यत्व पाये, तो इसमें विश्व का भला ही है। दीक्षा घटना है। जब जीवन में नव रूपान्तरण हो जाये, तभी दीक्षा अर्थ-सन्धि के बीच प्रकट होती है। अन्तर्यात्रा इसीलिए है, ताकि प्रत्येक अस्तित्व स्वतन्त्र शान्ति में लीन हो। मन, वचन, काया से बहिरात्मपन को छोड़ो और अन्तर-आत्मा में आरोहण करो। हमारा सम्पूर्ण अतीत हमें बहिर्यात्रा की याद दिलाता है। अतीत का अन्त नहीं है। बाहर की सीमा नहीं है। दूसरे को स्वयं में पकड़े रखने की जो प्रवृत्ति है, वह ढीली पड़ जानी चाहिए। द्वन्द्व से उबारने के लिए रास्ते हैं, मगर व्यक्ति स्वयं उसके लिए तैयार नहीं है। वह परमात्मा का प्रमाण चाहता है और अगर परमात्मा उसके समक्ष आ जाये, तो वह परमात्मा को पहचानने के लिए प्रस्तुत नहीं है। जिसे जानना चाहते हो, जिसे पाना चाहते हो, जिसे छोड़ना चाहते हो, उसके लिए पहले अपनी पूरी तरह तैयारी करो। मुझे याद है, एक युवक ने फकीर से कहा, मैं संन्यास लेना चाहता हूं, पर मेरे घर वाले इसके लिए प्रस्तुत नहीं हैं। फकीर ने कहा, पहले तुम अच्छी तरह सोच लो कि संन्यास लेना है या नहीं। यदि लेना है तो घर वालों की समस्या मैं हल कर दूंगा। जहां कानून है, वहां बचने के रास्ते भी हैं। युवक ने अपना दृढ़ संकल्प जताया और कहा कि मेरे पीछे घरवाले यदि आत्महत्या न करें तो मैं संन्यास लेने के लिए पूरा तैयार हूं। संसार और समाधि 117 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy