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________________ मनुष्य का प्रयास रहना चाहिए कि वह जीवन को भरपूर सफलता से जिये। तनाव और घुटन भरी जिंदगी जीना चलते फिरते शव को कन्धे पर ढोना है। तनाव दुःखदायी स्वप्न यात्रा है। सपनों के साथ बितायी गयी रात मात्र समय बिताना है, नींद की आवश्यकता को आपूर्त करना नहीं। धन, परिवार या अन्य सुविधाएं होते हुए भी व्यक्ति घुटन भरी जिंदगी क्यों जिये? धुंए-सी जिन्दगी जीने के बजाय दीपक-सी जिन्दगी जीना लाख गुना बेहतर है। धुएं सी जिन्दगी मौत है। जीवन, जलना है अनिमेष दीपक का। ___ मनुष्य विवश है। उसकी विवशताएं ही उसे प्रेरित करती है स्वयं के लिए सोचने को। भीड़ भरी जिन्दगी में भी मनुष्य को अपने लिए सोचने की कुण्ठित या उन्मुक्त जिज्ञासा जागृत होती है। वह अपनी मुंह बोली मौलिकता के अस्तित्व को पहचानने के लिए अन्तःप्रेरित होता है। उसकी यह अन्तःप्रेरणा ही अध्यात्म की ओर कदम बढ़ाना है। .. मनुष्य की अन्तर-जिज्ञासा यदि सघन-से-सघनतर होती जाए, तो सत्य की खोज के लिए वह न केवल चिन्तन करता है, अपितु अपने कृतित्व को उस पथ पर संयोजित भी करता है। वह अपने आप से ही पूछता है-आखिर में कौन हूं, मेरा जीवन-स्रोत, मेरी मौलिकताएं और मेरे मापदण्ड क्या है, यह दुनिया क्या है, और मैं यहां क्यों हूं; सुख सुविधाओं के अम्बार लगने के बावजूद दुःख और तनाव के कारण क्या हो सकते हैं? __ चिन्तन की गहराइयों में उसकी जहां तक पहुंच हो सकती है, वह तलस्पर्श करने का अदम्य पुरूषार्थ करता है। वह उस आखिरी सत्ता को भी खोज निकालना चाहता है, जो संसार चक्र की धुरी है। चिन्तन की इस आत्यन्तिक गहराई का नाम ही जीवन-समीक्षा और योग-अनुप्रेक्षा है। ___ कविताओं की रहस्यवादिता जिस सत्ता/शक्ति से जुड़ी है लोगों को उसकी झलक अपने भीतर मिलती है, जबकि कल्पना की जमुहाई लेने वाले कवियों को उसका प्रतिबिम्ब प्रकृति के सहस्रमुखी/सहस्रबाहु रूप में मिलता है। उस शक्ति को नाम फिर आप आत्मा दें या परमात्मा, उस तादाम्य की अनुभूति ही ध्यान की स्नातक सफलता है। यह सत्ता ही अस्तित्व को मौलिकता है। उसका परिचय पत्र क्या? यदि ध्यान से उसकी उपलब्धि हो जाए, तो विजय का उन्माद कैसा? यदि हत्तन्त्री में उसकी झंकृति न संसार और समाधि 106 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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