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सुखौटे
महावीर का अभिनिष्क्रमण दूर होता जा रहा है हमारी चेतना से, हमने कोढ़ युक्त देह पर ओढ़ रखे हैं रत्न - कम्बल मुखौटे ही हैं हमारा सम्बल । सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह नारों का है सम्बल आचरण में
छल ही छल हे महावीर !
हम कब होंगे निश्छल ?
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