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आलोक - आकांक्षी
आत्म - परीक्षण हेतु अन्तस् - निरीक्षण हेतु दीप - ज्योति से प्रकट करते हैं
आत्म - आलोक । राख हो जाता है
कषाय - कचरा जलकर नष्ट हो जाता है।
तृष्णा - पतंगा बचेगा भी कहाँ फिर
कर्म - अँधियारा प्राप्त कर आत्म - दर्शन होकर परमात्म - शरण शेष फिर कहाँ मरण ?
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