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नाथताकीओर
ऐश्वर्य और राज - सत्ता के बीच
तथागत महावीर तुम ही स्वामी थे
अपने आप के निसंग
संसार - सागर में
चलायी थी देह रूपी नौका
आत्मा रुपी नाविक ने साधना की सबल
___पतवारों के सहारे। दृष्टि थी सम्यक् साधन साध्य के प्रति विवेक विशुद्ध था
वैराग्य अनासक्त
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